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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘अगर वह इस बात की दरख्वास्त करे तो अदालत को तो मानना ही पड़ेगा।’’

‘‘नहीं, यह बात नहीं है। अदालत यह भी तो कह सकती है कि तलाक के लिये वजूहात काफी नहीं।’’

‘‘तो फिर क्या होगा?’’ नादिरा का प्रश्न था।

‘‘होगा यह कि सरकारी कागजों में उसकी बीवी वह अंग्रेज औरत ही रहेगी। हाँ, प्राइवेट तौर पर, बिना किसी किस्म की रस्म अदा किये वह किसी औरत से ताल्लुक बना सकता है।’’

‘‘यह जुर्म नहीं है क्या?’’

‘‘यह गुनाह तो है, मगर जुर्म नहीं।’’

‘‘तो फिर अभी हमारा इस मजमून पर सोचना किवल अनवक्त (समय से पूर्व चिन्ता) है।’’

इस घटना के दो सप्ताह पश्चात् अनवर आया और नवाब साहब को बता गया कि उसकी बीवी ने कोर्ट में दरख्वास्त दे दी है कि उसका खाविन्द उससे बहुत बुरा सलूक करता है और उसको पीटता है। इसीलिए वह उससे तलाक चाहती है।

‘‘यह कैसे हुआ?’’

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