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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘इसमें कुछ भी मुश्किल महसूस नहीं हुई। मैंने उसको कहा था कि वह लखनऊ में रहती हुई बहुत आवारा होती जाती है। इसीलिये उसको बाराबंकी चलना होगा और वहाँ घर की दूसरी औरतों की तरह रहना होगा। उसने इन्कार किया तो मैंने उसकी पिटाई कर दी।’’
‘‘तो फिर?’’
‘‘वह घर छोड़कर भाग गयी।’’
‘‘हूँ।’’
‘‘एक सप्ताह के बाद वह आयी, मगर मैंने पिस्तौल निकाल ली, जिससे वह फिर भाग गयी। अब वह अपने बाप के घर रहती है। उसने तलाक के लिये दरख्वास्त कर दी है। मैंने शादी के वक्त उसको तीस हजार रुपया दिया था। उसके अलावा भी वह कुछ हर्जाना माँग सकती है।’’
‘‘तो यह बला टली?’’
‘‘हाँ, यही मालूम होता है। मैं तो इसलिए यहाँ आया हूँ कि नादिरा और उसकी दूसरी बहनों से मेरी बातचीत हो जाये। कहीं ऐसा न हो कि मैं न इधर का रहूँ न उधर का।’’
‘‘किस किस्म की बातचीत चाहते हो?’’
‘‘मैं यही इतमीनान करना चाहता हूँ कि मेरी शादी यहाँ हो सकेगी अथवा नहीं? यूँ तो मैं नादिरा से शादी करना चाहता हूँ, अन्य किसी लड़की से नहीं। इस पर भी अगर नादिरा को पाने के लिये उसकी तीन बहनों को भी ले जाने की शर्त है, तो मैं उसके लिये भी तैयार हूँ।’’
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