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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘अनवर! यह बताओ की दूसरी लड़कियों से कैसे सलूक करोगे?’’
‘‘मेरा सलूक उनके सलूक पर दारोमदार रखता है। वे अगर मुहब्बत से रहेंगी तो मैं उनकी खातिर में रहूँगा। वे लड़े-झगड़ेंगी तो मैं नादिरा के साथ रहूँगा।’’
नवाब साहब हँस पड़े। हँसकर बोले, ‘‘और अगर नादिरा का सलूक ही तुमसे तसल्लीबख्श न हुआ तो?’’
‘‘यह मेरा काम है। मैं उसको खुश कर लूँगा।’’
अनवर की भेंट चारों लड़कियों से करा दी गई। चारों बुर्का पहने बैठी थीं। अनवर का उनसे परिचय कराकर असगरी की माँ वहाँ से खिसक गयी। कुछ देर अनवर उनमें से किसी के बात करने की प्रतीक्षा करता रहा। जब उनमें से कोई नहीं बोली तो उसने विवश हो बात आरम्भ कर दी:
‘‘आप सबने तो मुझको देख लिया है। मुझको अपनी सूरत-शक्ल पर इतना तो यकीन है कि आप सबने मुझको पसन्द कर लिया होगा। मगर मैंने तो चार बुर्के ही देखे हैं। मैं यह नहीं कह सकता कि मैंने नवाब साहब की लड़किय़ों को पसन्द किया है। मैं समझता हूँ कि आपको कम-से-कम अपने चेहरे तो दिखा ही देने चाहियें।’’
‘‘और ज्यादा-से-ज्यादा?’’ एक बुर्के की आवाज आई।
‘‘यह शादी के बाद बताऊँगा।’’
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