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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव

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अनवर के पिता ने जब यह सुना कि रहमत भाग गयी है और तलाक की दरख्वास्त कर बैठी है तो बहुत खुश हुआ। यह खबर सुनते ही वह अपने लड़के को मुबारकबाद देने और उसको आगे शादी करने में राय देने के लिये लखनऊ चला आया।

बातचीत हुई तो नवाब साहब यह सुनकर कि करामत हुसैन, वाहिदपुर के जमींदार की चारों लड़कियों से एकदम शादी की बातचीत हो चुकी है, परेशानी अनुभव करने लगे। उसने पूछा, ‘‘चारों से और एकदम?’’

‘‘हाँ अब्बाजान!’’

‘‘चार शादियाँ तो कोई बड़ी बात नहीं। मगर एक-एक करके करने में लुत्फ है। जब पहली काम की न रहे तो दूसरी करनी चाहिये। चारों जवान और इकट्ठी तो तुम्हारी आफत कर देंगी।’’

‘‘इस बात पर पहले सोच-विचार लिया गया है। मेरा लड़कियों से समझौता हो गया है और उन्होंने बिलकुल समझदारी की बात की है।’’

‘‘तो तुम लड़कियों से बातचीत भी कर चुके हो?’’

‘‘हाँ अब्बाजान!’’

‘‘कैसा हैं?’’

‘‘एक-से-एक खूबसूरत।’’

‘‘ओह!’’ बड़े नवाब साहब ने एक ठंडी साँस भर ली।

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