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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘तो मतलब यह हुआ कि अंधे कुएँ में छलाँग लगानी होगी।’’
‘‘अंधा कुआँ तो नहीं। नादिरा को आपने देखा है। हम उसकी बहनें हैं। इससे भी बढ़कर हम पढ़ी-लिखी और अपने मजहब पर ईमान रखती हैं।’’
‘‘अच्छी बात है। इस माँग को मैं वापस लेता हूँ। अब यह बताओ कि मेरे साथ आप सबका सलूर कैसा होगा?’’
वही बुर्का, जो पहले बातें कर रहा था कहता गया, ‘‘हम चारों बहनें चार कालिब एकजान हैं। हम एक जैसे सलूक की ख्वाहिश करती हैं। हम चारों भी आपसे एक जैसा सलूक ही करेंगी। और बताइये, आप क्या जानना चाहते हैं?’’
‘‘जानने को तो बहुत कुछ है। मगर आप शादी के पहले बुर्का उठाएँगी नहीं, इसलिये मैं शादी से पहले और कुछ पूछूँगा नहीं।’’
‘‘शुक्रिया। मैं समझती हूँ कि अब हमको चलना चाहिये।’’
अनवर उनको उठते और एक-एक कर जाते देखता रह गया। सबसे आखिर में जाने वाली वही लड़की थी, जो यह सब बातचीत कर रही थी। वह दरवाजे के पास पहुँच घूमी और मुख से बुर्का उठा, मुस्कराती हुई, हाथ से सलाम कर, फिर बुर्का ठीक कर कमरे से बाहर निकल गयी।
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