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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘मेरे घर में तेरे बाद कोई बच्चा नहीं हुआ। कौन कह सकता है कि चारों की चारों बाँझ हों, अथवा तुममें ही बच्चा पैदा करने की कुव्वत न रहे।’’
‘‘अब्बाजान! देख लें बच्चा तो मिल सकता है। इसमें किसी किस्म की दिक्कत नहीं होगी।’’
‘‘मेरी राय है कि बच्चा उससे ले लेना चाहिये। तुम्हारी औलाद है। वह तरबीयत से मुसलमान होनी चाहिये।’’
अनवर अगले दिन ऐना से मिलने गया और बच्चे को ले आया। सरवर इस समय एक वर्ष का हो चुका था और अब बाजारू दूध पर पल रहा था। उसको गाँव में पहुँचा दिया।
समय पर तालाक के मुकदमे की पेशी हुई और अनवर की तरफ से इसमें किसी प्रकार की आपत्ति नहीं उठाई गयी। सब-जज ने पहले तो ऐना को समझाने का यत्न किया कि इसका इलाज तलाक नहीं है। उसको इतने प्रेम से रहना चाहिये कि उसका खाविन्द उससे मुहब्बत करने लगे। ऐना का इस पर कहना था कि उसने कई बार यत्न किया है, मगर उसके खाविंद ने उसकी ओर पिस्तौल तानकर उसका स्वागत किया है।
इस पर तलाक स्वीकार हो गया और यह निश्चय हो गया कि अनवर हुसैन अपनी पत्नी ऐना उर्फ रहमत को तीस हजार रुपया एलिमोनी का दे और जब तक वह दूसरी शादी नहीं कर लेती, तब तक वह उसको खर्च के लिये दो सौ रुपया महीना तथा मकान का किराया दे।
जब अनवर को कोर्ट के हुक्म की नक्ल मिली तो उसने एक सप्ताह के अन्दर ही करामत हुसैन की चारों लड़कियों से निकाह पढ़ा लिया और उनको कोठी में ले आया।
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