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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


नवाब साहब ने यत्न किया कि वह अपनी बेगमें लेकर गाँव को चले, मगर वह माना नहीं। उसने कभी-कभी अपनी बीवियों को गाँव में अपने वालिद की बीवियों से मुलाकात कराने के लिये ले जाना मान लिया।

तालाक स्वीकार हो जाने और एलिमोनी की रकम मिल जाने के बाद विलियम ने अपनी लड़की से पूछ लिया, ‘‘ऐना, अब क्या होगा?’’

‘‘होगा क्या? अब मैं विवाहित जीवन से अपने-आपको अधिक स्वतन्त्र पाती हूँ। मैं दूसरी शादी नहीं करूँगी। मरने तक दो सौ रुपया महीना पेंशन लेती रहूँगी।’’

‘‘रह सकोगी इस तरह?’’

‘‘मुझको इस तरह जिन्दगी बिताने में लुत्फ आयेगा। लड़के के बड़े हो जाने पर उसको रियासत का भावी मालिक हो जाने के लिये बल दूँगी। मैं समझती हूँ कि मेरे बच्चे को यह रियासत विरासत में मिलने से कोई रोक नहीं सकेगा।’’

विलियम को इस योजना पर संतोष था। ऐना अपने पिता की कोठी पर रहती थी। वह वहीं रहती रही। महीने में एक बार अनवर से मिलने जाती और अपना खर्चा ले आती।

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