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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
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शारदा रजनी के परिवार में खूब हिल-मिल गयी थी। परिवार के सब सदस्य उससे प्यार की भावना रखते थे। रजनी से उसका विशेष स्नेह था।
जब वह दुरैया चली गयी तो रजनी से उसका पत्र-व्यवहार चलता रहा। इस प्रकार समय व्यतीत हो रहा था। एक दिन रजनी ने कॉलेज से लौटकर सायंकाल की चाय पर बैठते हुए अपनी माँ से कहा, ‘‘माँ! तुम्हारे घर में दो पोते एकदम होने वाले हैं।’’
‘‘दो? किस ज्योतिषी ने बताया है तुमको?’’
रजनी की भाभी सरोज छठे मास में जा रही थी। रजनी हँस पड़ी। सरोज ने मुस्कुराते हुए कह दिया, ‘‘रजनी! तुमको हँसी आ रही है और यहाँ जान पर बन रही है।’’
‘‘जान पर क्यों बन रही है? कोई विशेष कष्ट है, भाभी?’’
‘‘तुम्हारा सिर है। इतना पढ़-लिखकर तुम नासमझी की बातें कर रही हो।’’
‘‘भाभी! नहीं। शारदा का पत्र आया है, जिसमें उसने लिखा है कि उसकी तबीयत ठीक नहीं रहती। खाना पचता नहीं, सिर में चक्कर आते हैं और चित्त लेटे रहने को करता है। काकी ने उसको कह दिया है कि चक्की पीसना बन्द कर दे और किसी प्रकार का बोझा न उठाया करे।
‘‘क्यों माँ! है न तैयारी दो पोते-पोतियों की?’’
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