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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘मैं और रजनी क्लास से निकल हस्पताल में अपनी ड्यूटी पर जा रहे थे कि नानी, मौसी और मामी को इक्के से उतरते देखा है। हमने पूछा तो उन्होंने बताया कि पुलिस का एक आदमी उनको यह सूचना दे गया कि विष्णु बुरी तरह घायल हुआ हस्पताल में पड़ा है।

‘मैं उनके साथ ‘कैजुल्टी’ वार्ड में चला गया। किसी ने पूरे बल से किसी भारी वस्तु से उस पर वार किया प्रतीत होता था। वह अचेत पड़ा था। वहाँ कोई डॉक्टर था ही नहीं। केवल वह पुलिस कॉन्स्टेबल, जो उसको उठा लाया था, वहाँ खड़ा था। मैं डॉक्टर बुलाने के लिए चला गया।

‘‘डॉक्टर आया तो उसने सिर के घाव को, जिससे रक्त बह रहा था, सी देना उचित ही समझा। वह उसका घाव सीने लगा तो मैंने बाहर आकर पुलिस कॉन्स्टेबल से, जो अभी वहीं खड़ा था, पूछा, ‘यह कहाँ मिला था?’

‘‘उसने बताया कि वह स्टेशन रोड से वापस जा रहा था कि यह सड़क पर पड़ा था। वहाँ आसपास कोई नहीं था। उसने कहीं से एक इक्का बुलवाकर उसे उस पर उठाकर रखा और हस्पताल ले आया।

‘‘पीछे नानाजी और बड़े मामाजी भी आ गये। विष्णु को सचेत करने का बहुत यत्न किया गया, परन्तु उसको चेतना नहीं हुई। वह नौ बजे प्राणरहित हो गया। हम सब घर चले गये। शव कल पोस्टमार्टम के पश्चात् मिलेगा।’’

रायसाहब रमेशचन्द्र की सम्मति से दुरैया समाचार भेजने का निश्चय किया गया। कोठी के चौकीदार को पता समझाकर और एक पत्र में पूर्ण वृत्तान्त लिखकर भेज दिया गया। इस पर भी वहाँ से कोई नहीं आया। इन्द्र का विचार था कि उसकी माँ समाचार पाते ही आयेगी, परन्तु वह भी नहीं आयी।

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