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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


विष्णु के देहान्त के लगभग दो मास पश्चात् शारदा का भाई कमलाकर इन्द्र को मिलने के लिये आया। औपचारिक पूछगीछ के पश्चात् कमलाकर ने कहा, ‘‘मैं शारदा को अपने घर ले जाने के लिये आया हूँ। दुरैया जाने से पूर्व मैं आपसे मिलने चला आया हूँ। एक पत्र शारदा के लिये आप लिख दें कि वह मेरे साथ चली जाये। बिना आपके पत्र के वह जायेगी नहीं।’’

‘‘मैं उसको जाने के लिये नहीं कह सकता।’’ इन्द्र ने कहा, ‘‘उसको अपनी इच्छा तथा मेरे माता-पिता की इच्छा के अनुकूल इस विषय में निर्णय करना चाहिये।’’

‘‘तो इसी विषय में ही एक पत्र लिख दें आप।’’

इन्द्र ने पत्र लिख दिया। कमलाकर वापस जाने लगा तो इन्द्रनारायण उसके स्टेशन तक छोड़ने गया। मार्ग में विष्णु की बात चल पड़ी। विष्णु के निधन की बात सुनकर कमलाकर मुस्करा दिया। इन्द्र ने बता दिया, ‘‘किसी ने किसी भारी वस्तु से उसके सिर पर प्रहार किया प्रतीत होता था।’’

‘‘उसने किसी पर झूठे लाँछन लगाये होंगे और उसने उसका काम ही तमाम कर दिया होगा।’’

‘‘यह ठीक नहीं हुआ।’’

‘‘क्यों?’’

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