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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘बहुत विचित्र है! नवाब साहब ने अपने पोते की सुन्नत के जश्न के मौके पर बताया था कि इन डॉक्टरों के शिकंजे में नहीं फँसना चाहिए। अब वह फिर हस्पताल की शरण में आये हैं।’’

‘‘वैसे इरीन बहुत प्रसन्न प्रतीत होती है।’’

‘‘अगर कल समय मिला तो मैं उससे मिलने आऊँगा।’’

ऐना को यह गर्भ नवाब साहब से ही था।

ऐना प्रतिमास अपना खर्चा लेने के लिये अनवर की कोठी पर जाती थी और उसके साथ सम्पर्क में आती थी। अनवर की चारों बीवियाँ एक के अनन्तर एक गर्भ धारण करती गई और छः मास की अवधि में ही अनवर की खिदमत के लायक नहीं रहीं। इन दिनों ऐना अनवर से मेलजोल बहुत बढ़ गया। इस बात को चारों बीवियों ने देखा और समझा। उनको इसकी बहुत चिन्ता लगी। अतः उन्होंने अनवर से बात करने का निश्चय कर लिया।

एक रात अनवर खाने की मेज पर बैठा था। उसकी चारों पत्नियाँ भी बैठी थीं और नौकरानियाँ भोजन परोस रही थीं।

बात सबसे बड़ी बेगम असगरी ने आरम्भ की। उसने कहा, ‘‘हजरत! अब तो आपकी अंग्रेज बीवी फिर आपकी कोठी की जियारत करने लगी है। क्या हम आपको इस पुरानी दोस्ती के तरोताजा होने की मुबारक बाद दे सकती हैं?’’

अनवर एक क्षण के लिये परेशान-सा हुआ, परन्तु फिर मुस्कराकर बोला, ‘‘आप बहनें यह मुबारक देने की बात समझती हैं तो दे दीजिये। मगर एक बात मैं आपको बता देना चाहता हूँ कि अब उससे दुबारा शादी नहीं हो सकती।’’

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