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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘आजकल आप सबने मुझको फुरसत दे रखी है, इसी कारण मन बहलाने के लिये उसको बुला लेता हूँ।’’

‘‘मगर हजरत! आपको अपनी सेहत का भी तो खयाल रखना चाहिये। खुदावन्द ताला से हम सब यही दुआ करती रहती हैं कि वह आपकी उमर को दराज करे।’’

‘‘ठीक है। आपकी दुआ के लिये मैं आप सबका शुक्रगुजार हूँ। मैं खुद भी इस बात का खयाल रखता हूँ और आपकी दुआ व अपनी दवा से ठीक रहेगा। मगर मैं रहमत को छोड़ नहीं सकता। यह मेरा और उसका आपस का समझौता है।’’

‘‘समझौता किस बात का?’’

‘‘देखो बेगम! एक बात तुमको अब मालूम हो ही जानी चाहिये। वह मुझसे और मैं उससे अजहद मुहब्बत करते हैं। हमारा तलाक भी इसी मुहब्बत के कारण हुआ था। जब मैंने उसको बताया कि हमारा तलाक हो जाने से मुझको चार खूबसूरत बीवियाँ मिल सकती हैं तो वह मेरी मुहब्बत की वजह से तैयार हो गयी थी। मैंने उस समय उससे वायदा किया था कि मैं कचहरी में उसका क्लेम मान लूँगा और शादी के बाद भी उससे ताल्लुक रखूँगा और उसको अपनी बीवी की मानिंद समझूँगा।’’

इस पर तो चारों बेगमें भौचक रह गयीं। फिर किसी ने इस बाबत बात करना मुनासिब नहीं समझा।

अनवर और ऐना के सम्बन्ध का पता नवाब साहब को भी लग गया। एक दिन एकाएक वे लखनऊ आये और सीधा अनवर की कोठी में रहने चले आये। ड्राइंग-रूम में जाकर वे बैठ गये और नौकर को अनवर को कहने के लिये भेज दिया।

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