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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
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इस समय अनवर नौकर से समाचार पाकर उस कमरे में आ गया और ऐना तथा नवाब साहब को परस्पर बातें करते देख कुछ परेशानी अनुभव करने लगा। उसने नवाब साहब को झुककर आदाब अर्ज किया तो नवाब साहब ने सुर हिलाकर जवाब दिया और कहने लगे, ‘‘अनवर, तुम्हारी अंग्रेज बीवी कह रही है कि तुम उसका गुजारा वक्त पर नहीं देते। इसके लिये उसको यहाँ कई-कई चक्कर लगाने पड़ते हैं।’’
‘‘इन बेगमों से पिछले महीने बीमार रहने की वजह से खर्चा कुछ ज्यादा हो गया था, अब्बाजान! मैंने उसको कहा था कि अगले महीने इकट्ठा दे दूँगा।’’
‘‘यह ठीक नहीं है, अनवर! मैंने उसको कहा है कि वह मुझसे, गाँव में आकर, ले जाया करे। वह मुझको कल अपनी कार में ले चलने को कह रही है। साथ ही वह अपने बच्चे से भी मिलना चाहती है।’’
‘‘तो ले जाइये, अब्बाजान! मगर वह परदे में नहीं जायेगी।’’
‘‘मैं उसको अपनी बीवी बनाकर तो ले जा नहीं रहा। तुम्हारे उससे कुछ दिन के ताल्लुकात की वजह से हमारा उसको कुछ देना बनता है। वह लेने के लिए ही वहाँ जा रही हैं।’’
‘‘ठीक है, अब्बाजान! मैं तो उससे अपना कोई रिश्ता नहीं मानता। इसलिये वह कहाँ जाती है और कैसे जाती है, यह सब मेरे सोचने की बातें नहीं हैं।’’
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