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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


इस प्रकार ऐना गाँव गयी तो वह बच्चे के मोह के कारण अथवा अन्य किसी कारण वहीं रह गयी। जब वह एक सप्ताह तक नहीं लौटी तो अनवर की पत्नी नरगिस ने पूछ लिया, ‘‘हुजूर! वह आपकी अंग्रेज बीवी कई दिन से दिखाई नहीं दी? कहाँ है वह?’’

‘‘वह अब्बाजान के साथ गाँव गयी थी, मगर लौटी नहीं। न मालूम उसको क्या हो गया है वहाँ?’’

‘‘अपने बच्चे के मोह में वहीं रह गयी मालूम होती है।’’

‘‘बच्चे का मोह उसको कभी नहीं रहा। तालाक के वक्त भी वह इस बात पर पूरा इसरार करती थी कि बच्चे की परवरिश का प्रबन्ध मैं ही करूँ। तभी वह तालाक के लिए राजी हुई थी।

‘‘अब वह गई है तो मुझसे पूछे बिना। न तो वह लौटी है और न ही उसने कोई खबर भेजी है।’’

‘‘तो उसका पता करना चाहिये। मुझको शक है कि आपके वालिद शरीफ ने उसे कहीं अपने हरम में न डाल लिया हो।’’

‘‘नहीं-नहीं, नरगिस! ऐसा नहीं हो सकता। वालिद साहब इस समय पचास से ऊपर हैं और फिर उनके हरम में चार बीवियां पहले ही मौजूद हैं।’’

‘‘तो हजरत। पता करना चाहिये। क्या वजह है कि वापस नहीं आई?’’

उसी रात असगरी ने बात स्पष्ट कर दी। उसने कहा, ‘‘आपकी अंग्रेज बीवी तो गई।’’

‘‘क्या मतलब?’’

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