|
उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
|
410 पाठक हैं |
संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘मैं तुमसे एक बात करने आया था।’’
‘‘वह नाश्ता करते हुए बड़े इत्मीनान से हो सकेगी। आइये, बैठिए तो।’’
इतना कह ऐना नाश्ते का प्रबंध करने चली गयी। अनवर उसी कमरे में था, जिसमें नवाब साहब पलंग पर बैठे कॉफी पी रहे थे, एक कुर्सी पर बैठ गया। नवाब साहब ने कहा, ‘‘देखा है न वह फूल! जिसको तुमने तलाक देने के लिए मजबूर किया था। मैं उसकी कदर करता हूँ, बस इसलिए ही नाराज हो न?’’
अनवर के मन पर अभी भी ऐना के सौन्दर्य का प्रभाव बना था। इस कारण वह चुप रहा और बोल नहीं सका। नवाब साहब ने आगे कह दिया, ‘‘क्यों, क्या अब अफसोस हो रहा है?’’
अनवर का दृष्टिकोण यह नहीं था। वह तो यह विचार कर रहा था कि नादिरा ऐना से अधिक सुन्दर है। यूं तो असगरी भी कुछ कम सुन्दर नहीं थी। इस पर भी वह ऐना को वापस चाहता था। उसको अफसोस नहीं था, केवल एक अन्य औरत को रखने का लोभ था। वह अपने पिता को बता नहीं सका।
दस मिनट तक नवाब साहब ने कॉफी समाप्त की और अपनी सुस्ती निकलाने के लिये कमरे से निकल बरामदे में टहलने लगे। जब नवाब साहब शौचालय चले गये तो ऐना अनवर को नाश्ते के लिये बुलाने चली आयी। अनवर ने उससे पूछ लिया, ‘‘तो क्या नवाब नाश्ता नहीं लेंगे?’’
|
|||||










