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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘वे दस बजे अपनी बेगमों के साथ नाश्ता लेंगे। उस समय तक बेगमें नहाकर तैयार हो जाती हैं। मैं नाश्ता लेकर खुले में घूमने के लिए जाया करती हूँ। आज आपके साथ ही नाश्ता होगा और फिर हम घूमने चलेंगे।’’

अनवर उठकर ऐना के साथ खाने के कमरे में चला गया। वहाँ अंग्रेजी ढंग पर मेज-कुर्सियां लगी थीं। अनवर ने बैठते हुए पूछा, ‘‘तो नवाब साहब तुम्हारे साथ बैठकर खाना नहीं खाते?’’

‘‘रात का खाना उनके साथ होता है और अगर उनकी इच्छा हो तो वे इसी हिस्से में सो जाते हैं। शराब पीने के बाद उनका भीतर जनानखाने में जाना कठिन हो जाता है।’’

‘‘और शायद तुम्हारे पलंग पर सोये बिना उनका नशा उतरता भी नहीं होगा?’’

ब्रेकफास्ट का सामान ऐना स्वयं लगा रही थी। उसने अनवर के सामने प्लेट रख मक्खन, टोस्ट, जाम और चाय रख दी। साथ ही उसके प्रश्न का उत्तर दे दिया, ‘‘यह तो अपने मोतरिम वालिद साहब से पूछ लीजिये। मैं तो इतना ही जानती हूँ कि यहाँ उनको अपनी बेगमों के कमरों से अधिक आराम मिलता है।’’

अनवर ने टोस्टों पर मक्खन लगाते हुए कहा, ‘‘देखो ऐना! तुम्हारा यह वायदा था कि तुम तलाक के बाद भी मेरी वफादार बीवी बनी रहोगी।’’

‘‘मैं समझती हूँ कि मैं आपकी उतनी ही वफादार बीवी हूँ, जितने आप मेरे वफादार खाविन्द हैं।’’

‘‘तो क्या अब मेरे साथ लखनऊ चलने को तैयार हो?’’

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