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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


इस कथन से रामधार और उसकी पत्नी को दुःख हुआ; साथ ही अपने लड़के के भविष्य की चिन्ता भी लग गयी।

‘‘परन्तु इन्द्र का विवाह तो हो ही जाना चाहिये।’’ माँ का कहना था।

‘‘अच्छी बात है। विवाह भी हो जायेगा। बहू गाँव में रहेगी और इन्द्र यहाँ रहकर पढ़ाई करेगा।’’

इस प्रकार समझौता हो गया। इन्द्रनारायण को कॉलेज में भरती कर दिया गया। पंडित शिवदत्त दूबे को इसमें एक लाभ प्रतीत हुआ था। उसका अपना छोटा लड़का विष्णु भी इन्द्रनारायण के साथ पढ़ता था। उसका विचार था कि दोनों लड़के इकट्ठे रहने से पढ़ने में अधिक रुचि ले सकेंगे। दोनों को एक ही कॉलेज में भरती कराया गया।

दोनों थे तो मामा-भानजे, परन्तु दोनों की प्रकृति परस्पर नहीं मिलती थी। इन्द्रनारायण में अभी भी देहात के एक लड़के की सरलता विद्यमान थी और विष्णुस्वरूप नगर के आचार-विचार से ओत-प्रोत था। एक में अभी भी एक पुरोहित के घर की धर्मपरायणता की छाया थी और दूसरे में एक जीवन-सुलभी के घर की गन्ध व्याप्त थी। अतः दोनों सम्बन्धी होते हुए तथा एक ही घर में रहते हुए भी भिन्न-भिन्न प्रकृति रखते थे।

यह भिन्नता स्कूल में तो स्पष्ट नहीं हुई, परन्तु कॉलेज में पहुँचते ही बढ़ने लगी। एक दिन विष्णु ने इन्द्र से कह दिया—‘‘देखो इन्द्र! यह स्कूल नहीं है, जहाँ लड़कों की शिकायत लेकर मास्टरों के पास पहुँच गये तो मास्टर ने आकर लड़कों को डाँट दिया अथवा पीट दिया। यहाँ प्रथम तो तुम्हारी शिकायत कोई सुनेगा ही नहीं और यदि कोई सुनेगा भी तो तुम्हारी ही हँसी उड़ाई जायेगी। सब यह आशा करते हैं कि हम सब सज्ञान हो गए हैं। हमको अपने झगड़े स्वयं ही निपटाने चाहिये।’’

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