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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘परन्तु मामा! क्या मैंने पहले कभी किसी की शिकायत की है?’’

‘‘देखो, मुझको मामा कहकर मत बुलाया करो।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘यहाँ यह गाली मानी जाती है। यदि तुम मुझको मामा कहकर सम्बोधित करोगे तो क्लास के सभी लड़के मुझको मामा-मामा पुकारने लगेंगे। यह सब मुझे पसन्द नहीं है।’’

‘‘परन्तु मैं तो तुम्हारा आदर करने के लिए इस प्रकार बुलाता हूँ। माँ तो तुमको मेरे मामा कहने पर बहुत प्रसन्न होती है।’’

‘‘परन्तु यहाँ तुम्हारी माँ पढ़ने नहीं आती। लड़के और लड़कियाँ सब तुम्हारी और मेरी हँसी उड़ायेंगे। नहीं इन्द्र! तुम मुझको दादा कहकर पुकारा करो।’’

इन्द्रनारायण अब तक यह तो समझने लगा था कि नगर की बातें गाँव से भिन्न हैं, इस कारण वह चुप कर गया। उस दिन से उसका मामा विष्णु, दादा विष्णु हो गया।

कॉलेज में विष्णु की मित्र-मण्डली भी सर्वथा भिन्न थी। इन्द्र की कोई मित्र-मण्डली नहीं थी। यह भी कहा जा सकता है कि उसका कोई घनिष्ठ मित्र नहीं था। वह सबके साथ समान व्यवहार रखता था। कॉलेज के लड़के अनेक प्रकार की बातें करते रहते थे, परन्तु इन्द्र से गूढ़ बात करने वाला कोई नहीं था।

एक दिन कॉलेज से लौटते समय इन्द्रनारायण ने विष्णु से पूछ ही लिया, ‘‘दादा! मनोहर और मदन से बहुत छिप-छिपकर बातें होती हैं?’’

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