उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
‘‘यह सामाज-शास्त्र में अमेरिका का विशेष आविष्कार है। मैं समझता हूं कि तुम मदन को बुला लाओ, जिससे हम तुम दोनों को बधाई दे सकें।’’
लैसली गई और मदन को वहां ले आई। वह मदन को अपने साथ खड़ी कर बोली, ‘‘मम्मी! पापा!! हमें आशीर्वाद दीजिए।’’
डॉक्टर ने अपनी चैक बुक निकाली और बीस हजार डालर का चैक काटकर मदन के हाथ में देते हुए कहा, ‘‘मदन! यह तुम दोनों को अपना विवाहोत्सव मनाने के लिए दे रहा हूं। जो कुछ भी मेरी वसीयत से लैसली और तुमको मिलने वाला है, वह तो बाद में मिलेगा। इसका उसके साथ कोई सम्बन्ध नहीं है।’’
मदन ने हिन्दुस्तानी तरीके नीला और डॉक्टर के चरणस्पर्श कर कहा, ‘‘मैं आपका बहुत ही आभारी हूं, जो आपने मेरी नालायकीको न केवल क्षमा कर दिया है, प्रत्युत हमारे भावी जीवन के लिए शुभकामना भी की है। मैं नहीं जानता कि इस धन का मैं किस प्रकार प्रयोग करूं। हमने यह निश्चय किया है कि मेरे और लैसली के भीतर की यह बात किसी दूसरे की जानने की आवश्यकता नहीं। हम इस स्वाभाविक वृत्ति के लिए किसी को दावत भी देने का विचार नहीं करते।’’
‘‘ठीक है, ठीक है। मैं भी इसको इसी प्रकार समझता हूं। इस पर भी मुझको भारी प्रसन्नता होगी यदि तुम दोनों इस धन का भोग करो। यदि कहो तो मैं बताऊं कि तुम इससे क्या कर सकते हो?’’
‘‘बताइए।’’
‘‘तुम्हारी पढ़ाई की फर्स्ट टर्म समाप्त होने वाली है। दो मास के लिए यूनिवर्सिटी बन्द रहेगी। तुम वर्ल्ड टूर का हवाई जहाज का टिकट बना लो और दुनिया के बड़े-बड़े नगरों की सैर करते हुए दोनों अपना हनीमून मना लो।’’
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