उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
लैसली प्रसन्नता से उछल पड़ी और बोली, ‘‘हम आपकी राय मानेंगे और कल ही पासपोर्ट और वीजा के लिए आवेदन कर देंगे।’’
नीला ने दोनों को बैठने के लिए कहा और बोली, ‘‘लैसली! मैं इस समय तुम दोनों को तुम्हारे मम्मी और पापा की कथा सुना देना उचित समझती हूं। हमारे उदाहरण से तुम दोनों को कुछ शिक्षा ही मिलेगी।’’
दोनों बैठ गये और उत्सुकता से मम्मी का मुख देखने लगे। नीला ने एक क्षण तक आंखें मूंदे हुए कहा, ‘‘तुम्हारे पापा मेरे मामा के लड़के हैं। ये मुझसे सात बड़े हैं। ये कहते हैं कि मैं इनकी गोद में खेली हूं। जब तक मैं भारतवर्ष में थी, इनको भैया सम्बोधन करती थी। जब मैं चार वर्ष की थी, उस समय ये आठवीं श्रेणी में पढ़ते थे। इससे पूर्व की बात का मुझे स्मरण नहीं। ये उस समय मुझे बहिन समझ प्यार से मेरा मुख चूमा करते थे। मुझे तो इतना ही स्मरण है कि इनका चुम्बन मुझे अपनी मां का चुम्बन की अपेक्षा अधिक आनन्दप्रद प्रतीत होता था।
‘‘जब मैं पांचवीं श्रेणी में आई तो मां ने मुझे इनकी गोद में बैठने के लिए मना कर दिया। और इनको मुख चूमने के लिए रोक दिया। इस प्रकार पांच वर्ष व्यतीत हो गये और मैंने मैट्रिक पास कर लिया। ये उस वर्ष डॉक्टरी पास करके आए थे। मां इनको दूध-मिठाई खिलाना चाहती थी। वे हमको बैठा छोड़ इनके खाने के लिए कुछ लेने के लिए गई तो ये मुझसे पूछने लगे कि मैं क्या चाहती हूं? मुझे छः-सात वर्ष पूर्व के अनुभव स्मरण थे। मैंने कह दिया, ‘आपका मुख चूमने को जी करता है।’
तो ये बोले, ‘जल्दी करो। देर क्यों कर रही हो? बूआ आ जायेंगी तो फिर ऐसा करने के लिए अवसर नहीं मिलेगा।’
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