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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


कई मास तक वह चलता रहा। एकाएक मदन के पत्र संक्षिप्त और व्यावहारिक होने लगे। ‘सब बड़ों को नमस्कार।’ इतने से वाक्य ही वह अपने श्वसुर और अपने घर के सब बड़ों से निपट लेता था। महेश्वरी को भी वह अब यही लिखता कि–‘‘मैं ठीक हूं, आशा है तुम भी ठीक होगी।’’

इसके बाद वह समय आया जब मदन के लैसली से सम्बन्ध का ज्ञान डॉक्टर और मिसेज साहनी को हो गया। एक प्रकार से मदन अपना विवाह हो गया मानता था और उसने महेश्वरी को पत्र लिखने तथा उसके पत्र पढ़ने बन्द कर दिये थे।

मदन का एक पत्र आया था। उसमें लिखा था, ‘‘मैं पढ़ाई में और कॉलेज के प्रोयोगिक कार्यों में इतना व्यस्त हूं कि पत्र लिखने का भी समय नहीं मिलता।’’ इसके बाद जब कोई पत्र नहीं आया तो किसी प्रकार की चिन्ता नहीं की गई। इस समय एक घटना घटी। मदन का बाबा गोपीचन्द मोटर दुर्घटना में घायल हो गया और अस्पताल में पहुंचने के उपरान्त कुछ ही घण्टों में उनका प्राणान्त हो गया। महेश्वरी ने इसकी सूचना अपने पत्र में भेज दी थी। इस पत्र का भी कोई उत्तर नहीं आया। इस पत्र के पहुंचने के समय मदन और लैसली संसार भ्रमण के लिए गये हुए थे। उसी समय फकीरचन्द ने एक पत्र शोक प्रकट करने के लिए लिखा था। दोनों का उत्तर नहीं आया। तदनन्दर महेश्वरी ने एक के उपरान्त दूसरा और फिर तीसरा पत्र लिखा। जब दो मास तक कोई उत्तर नहीं आया तो फकीरचन्द ने एक पत्र मदन तथा दूसरा डॉक्टर साहनी के नाम को लिख दिया। डॉक्टर साहनी के पत्र में तो उसने केवल इतना ही लिखा था कि दो मास से अधिक हो गये हैं, मदन का कोई पत्र नहीं आ रहा है। मदन के पत्र में उसने पुनः मदन के बाबा की मृत्यु का समाचार लिखते हुए अपनी ओर से शोक प्रकट किया था। और साथ ही उसने यह भी लिखा था कि उसको कम-से-कम अपनी दादी को तो सान्त्वना का एक पत्र लिख देना चाहिए था।

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