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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


इस प्रकार ड्राइंगरूम में अन्तिम बात भी हो गई। साहनी ने बात आरम्भ करते हुए कहा, ‘‘महेश्वरी! हमें बहुत खेद है कि तुम आईं और मदन तुम्हें इस स्थिति में मिला। परन्तु यह तो ऐसी दशा में हुआ है जिस पर किसी का वश नहीं। पुलिस ने भी यह लिख दिया है कि यह घटनामात्र है। बोर्ड इसके लिए उत्तरदायी नहीं है। ऐसी स्थिति में तुम अपने मदन से पुराने सम्बन्ध चालू करना चाहोगी या नहीं, यह हम नहीं कह सकते।’’

महेश्वरी ने कहा, ‘‘पापा! मेरे तो उनसे जैसे सम्बन्ध पहले थे, वैसे ही अब भी हैं। प्रश्न तो यह है कि बहिन लैसली मेरे सम्बन्धों को अपने स्वाभाविक दिशा में चलने देगी अथवा नहीं? दिन के समय हॉस्पिटल में इन्होने कहा था कि वह अब मदनजी से सम्पर्क रखने के विषय पर विचार करके बताएगी। क्या उसने विचार कर लिया है?’’

लैसली ने उत्तर देते हुए कहा, ‘‘मैं मदन की शत्रु नहीं हूं। मेरी उसके प्रति पूर्ण सहानुभूति है। फिर भी अब उसकी पत्नी के रूप में रहना नहीं चाहती। वह अपना नवीन विवाह करने के लिए स्वतन्त्र है।’’

हंसते हुए इलियट ने कहा, ‘‘बताओ मिस खन्ना! तुम उनसे विवाह करोगी?’’

‘‘हमारे यहां विवाह तो माता-पिता किया करते हैं। जैसा वे करेंगे, मुझे अस्वीकार नहीं होगा। हां, मैं उनको इस विपत्ति के समय छोड़ नहीं सकती।

यदि लैसली उसको स्वतन्त्र करती है, तो मैं उनको यही सम्मति दूंगी कि वे हिन्दुस्तान लौट जायें।’’

डॉक्टर साहनी ने कहा, ‘‘उसकी पट्टी खुलने में एक मास लग जायेगा। तब तक तुम यहीं पड़ी रहोगी क्या?’’

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