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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


भोजन का प्रबन्ध पड़ोस के एक होटल में कर दिया गया था। लैसली साढ़े आठ बजे हॉस्पिटल जा पहुंची। दोनों को वह अपने घर ले आई। लैसली यह जान कि महेश्वरी दिन-भर मदन के पास बैठी रही है और उससे बातें कर उसका दिल बहलाती रही है, चकित थी। वह मन में विचार करती थी कि यह मुर्खता है अथवा सम्मोहन। वह तो समझ रही थी कि उसके पापा ने नर्सिंग होम का प्रबन्ध कर और उसका व्यय अपनी जेब में वहन कर अपने कर्तव्य का पालन कर दिया है।

खाना खाते समय किसी प्रकार की बात नहीं हुई। साहनी ने कहा कि वह महेश्वरी को पहचान नहीं पाया था। क्योंकि जब उसने महेश्वरी को देखा था, उस समय तो वह बहुत ही छोटी आयु की थी। तदनन्तर उसने उसके पिता के पत्र का उत्तर न देने की सफाई देते हुए कहा, ‘‘लाला फकीरचन्दजी के पत्र मदन को दे दिए थे और मैं समझता था कि उसने उत्तर दे दिया होगा। मुझे बहुत खेद है कि अपने मन की किसी अवस्था के कारण वह उनको पत्र नहीं लिख सका।’’

पूर्ण वार्तालाप एक ही दिशा से होता रहा। महेश्वरी चुपचाप बातें सुनती रही। जब डॉक्टर ने उसकी उस स्थिति का वर्णन किया तो सुनकर महेश्वरी के आंसू निकल आये।

भोजन समाप्त होने पर सबको लेकर साहनी अपने ड्राइंगरूम में आ गया। इलियट वहीं से विदा हो जाना चाहती थी, परन्तु महेश्वरी ने कहा, ‘‘मैं होटल तो जाऊंगी ही। तुम भी मेरे साथ चलना। मैं तुम्हें तुम्हारे निवास स्थान पर छोड़ दूंगी।’’

लैसली ने कहा, ‘‘इलियट! मैं तुम दोनों को छोड़ दूंगी।’’

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