उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
‘‘उस स्थिति में मदन का अपना बैंक में पर्याप्त धन है। वह ठीक हो कर हवाई जहाज से हिन्दुस्तान जाकर अपनी दादी और दादा के पास रह सकता है। और यदि उसकी मंगेतर उसको अपना पति मान स्वीकार कर लेती है तो वह स्वयं ही उसको लेकर चली जायेगी।’’
नीला बोली, ‘‘मैं उसको कह आई हूं कि लैसली उसको अपनी मोटर में लेने के लिए आएगी।’’
‘‘कहाँ मिलेगी वह?’’
‘‘वहीं अस्पताल में। उसके साथ तुम्हारी सहेली इलियट भी है।’’
‘‘वह क्या करेगी आकर?’’
‘‘वह वहां बैठी थी। मैं महेश्वरी को खाने का निमन्त्रण दे रही थी कि उसने कहा कि वह तो उसके साथ भोजन करेगी। इस कारण मुझे दोनों को ही बुलाना पड़ा है।’’
लैसली गम्भीर हो विचार करने लगी। कुछ क्षण चुप रहने के उपरान्त वह बोली, ‘‘यह भी ठीक ही है। वह भी किसी समय मदन से विवाह करने की इच्छा करती थी। अब उसके लिए भी अवसर है। वह चाहे तो यत्न कर सकती है।’’
नीला हंस पड़ी। उसने कहा, ‘‘वह तुमसे कम समझदार नहीं।’’
‘‘यही तो देखना है।’’
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