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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


इस प्रकार उसका यह कार्यक्रम उन दिनों का होता था, जिन दिनों उसकी ड्यूटी रात की होती थी। एक सप्ताह तक ऐसा कार्यक्रम रहने के बाद उसके कार्य का समय बदल जाता तो उसको प्रातः ६ बजे कार्य पर जाना होता। छः से दस बजे तक कार्य कर वह प्रातः का अल्पाहार लेती थी। फिर ग्यारह बजे से तीन बजे तक कार्य करने के उपरान्त वह मध्याह्नोत्तर की चाय के लिए घर आ जाया करती थी। चाय पी कर कुछ आराम करने अनन्तर वह भ्रमण के लिए चली जाती थी। इन्हीं दिनों वह अपनी सहेलियों से मिला करती थी।

लैसली ‘पैरामाउण्ट क्लब फॉर गर्ल्ज’ की सदस्या थी। इस क्लब का संचालन कैथोलिक चर्च के ईसाई करते थे। वे लड़के-लड़कियों के संयुक्त क्लबों को अच्छा नहीं समझते थे। किन्तु इस क्लब में भी सदस्य लड़कियां अपने पुरुष मित्रों को आमन्त्रित करती रहती थीं। इसके लिए केवल इतना ही प्रतिबन्ध था कि सदस्यों के अतिरिक्त अन्य व्यक्ति सप्ताह में एक दिन केवल मंगलवार को ही बुलाए जा सकते थे। उस दिन का नाम ‘रिसेप्शन डे’ रखा हुआ था। इस दिन नाच और मद्य का सेवन सप्ताह के अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक होता था।

लैसली उस दिन क्लब में जाना पसन्द नहीं करती थी। इसका अर्थ लैसली की सहेलियां यह समझती थीं कि या तो उसका कोई पुरुष मित्र नहीं है और या वह अमेरिकान भाषा में बूवी कहीं जाने वाली लड़की है।

वास्तव में प्रचलित अर्थो में वह बूवी नहीं थी। इसी कारण जब इस शब्द की व्याख्या करते समय मदन ने कहा था कि वह अपने पवित्र बिस्तर को मिस फ्रिट्ज के योग्य नहीं मानता था तो उसको मदन के कथन पर विश्वास आ गया था। वह स्वयं भी कुछ ऐसा ही अनुभव करती थी। अब वह मदन को भी अपने विचारों के सामन ही विचार वाला पाकर वह अपने हृदय की वर्फ को पिघलती हुई सी अनुभव करने लगी थी। यही बात उसकी मां ने प्रथम दिवस उसकी आंखों में अंकित पाई थी।

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