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प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :122
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8580

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मुंशी प्रेमचन्द की चार प्रसिद्ध कहानियाँ


कुँवर साहब इन कामों से अवकाश पाकर एक दिन नेशनल बैंक की ओर जा निकले। बैंक खुला हुआ था। मृतक शरीर में प्राण आ गये थे। लेनदारों की भीड़ लगी हुई थी। लोग प्रसन्नचित्त लौटे जा रहे थे। कुँवर साहब को देखते ही सैकड़ों मनुष्य बड़े प्रेम से उनकी ओर दौड़े। किसी ने रोकर, किसी ने पैरों पर गिरकर और किसी ने सभ्यतापूर्वक अपनी कृतज्ञता प्रकट की। वह बैंक के कार्यकर्ताओं से भी मिले। लोगों ने कहा, इस विज्ञापन ने बैंक को जीवित कर दिया। बंगाली बाबू ने लाला साईंदास की आलोचना की–वह समझता था, संसार में सब मनुष्य भलामानुस है। हमको उपदेश करता था। अब उसका आँख खुल गया है। अकेला घर में बैठा रहता है! किसी को मुँह नहीं दिखाता हम सुनता है वह यहाँ से भाग जाना चाहता था। परन्तु बड़ा साहब बोला, तुम भागेगा तो तुम्हारा ऊपर वारंट जारी कर देगा।

अब साईंदास की जगह बंगाली बाबू मैंनेजर हो गये थे।

इसके बाद कुँवर साहब बरहल आये। भाइयों ने यह वृत्तांत सुना, तो बिगड़े, अदालत की धमकी दी। माता जी को ऐसा धक्का पहुँचा कि वह उसी दिन बीमार होकर एक ही सप्ताह में इस संसार से विदा हो गयीं। सावित्री को भी चोट लगी, पर उसने केवल सन्तोष ही नहीं किया, पति की उदारता और त्याग की प्रशंसा भी की। रह गये लाला साहब। उन्होंने जब देखा कि अस्तबल से घोड़े निकले जाते हैं, हाथी मकनपुर के मेले में बिकने के लिए भेज दिये गये हैं, कहार विदा किये जा रहे हैं, तो व्याकुल हो पिता जी से बोले–बाबू जी, यह सब नौकर, घोड़े, हाथी कहाँ जा रहे हैं?

कुँवर–एक राजा साहब के उत्सव में।

लाला जी–कौन से राजा?

कुँवर–उनका नाम राजा दीनसिंह है।

लाला जी–कहाँ रहते हैं?

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