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कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584

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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


प्रकृति की उपासना ने ही यूरोप के बड़े-बड़े कवियों को आसमान पर पहुँचा दिया है। यूरोप में होते, तो आज इनके द्वार पर हाथी झूमता होता। एक दिन एक बालक को रोते देखकर आप रोने लगे। पूछता हूँ– भाई क्यों रोते हो तो और रोते हैं। मुँह से आवाज नहीं निकलती। बड़ी मुश्किल से आवाज निकली।

विनोद–जनाब! कवि का हृदय कोमल भावों का स्रोत है मधुर संगीत का भंडार है, अनंत का आईना है।

रसिक–क्या बात कही है आपने, अनंत का आईना है! वाह! कवि की सोहबत में आप भी कुछ कवि हुए जा रहे हैं।

गुरुप्रसाद ने नम्रता से कहा–मैं कवि नहीं हूँ और न मुझे कवि होने का दावा है। आप लोग मुझे जबरदस्ती कवि बनाए देते हैं। कवि स्रष्टा की वह अद्भुत् रचना है; जो पंचभूतों की जगह नौ रसों से बनती है।

मस्तराम–आपका यही एक वाक्य है, जिस पर सैकड़ों कविताएँ न्योछावर हैं। सुनी आपने रसिकलालजी, कवि की महिमा। याद कर लिजिए, रट डालिए।

रसिक–कहाँ तक याद करें भैया, यह तो सूक्तियों में बातें करते हैं। और नम्रता का यह हाल है कि अपने को कुछ समझते ही नहीं, महानता का यही लक्षण है। जिसने अपने को कुछ समझा, वह गया। (कम्पनी के स्वामी से) आप तो अब खुद ही सुनेंगे, इस ड्रामा में अपना हृदय निकालकर रख दिया है। कवियों में जो एक प्रकार का अल्हड़पन होता है, उसकी आपमें कहीं गंध भी नहीं। इस ड्रामे की सामग्री जमा करने के लिए आपने कुछ नहीं तो एक हजार बड़े-बड़े पोथों का अध्ययन किया होगा। वाजिदअली शाह को स्वार्थी इतिहास लेखकों ने कितना कलंकित किया है, आप लोग जानते ही हैं। उस लेखराशि को छाँटकर उसमें से सत्य के तत्त्व को खोज निकालना आप ही का काम था।

विनोद–इसलिए हम और आप दोनों कलकत्ता गये वहाँ कोई छः महीने मटियाबुर्ज की खाक छानते रहे। वाजिदअली शाह की हस्तलिखित एक पुस्तक तलाश की। उसमें उन्होंने खुद अपनी जीवनचर्या लिखी है। एक बुढ़िया की पूजा की गई, तब कहीं जाके छः महीने में किताब मिली।

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