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प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584

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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


अमरनाथ–पुस्तक नहीं, रत्न है।

मस्तराम–उस वक्त तो उसकी दशा कोयले की थी, गुरुप्रसाद जी ने उस पर मोहर लगाकर अशर्फी बना दिया। ड्रामा ऐसा चाहिए कि जो सुने, दिल हाथों से थाम ले। एक-एक वाक्य दिल में चुभ जाए।

अमरनाथ–संसार-साहित्य के सभी नाटकों को आपने चाट डाला और नाट्य-रचना पर सैकड़ों किताबें पढ़ डालीं।

विनोद–जभी तो चीज भी लासानी हुई है।

अमरनाथ–लाहौर ड्रामेटिक क्लब का मालिक हफ्ते भर यहाँ पड़ा रहा, पैरों पड़ा कि मुझे यह नाटक दे दीजिए; लेकिन आपने न दिया। जब ऐक्टर ही अच्छे नहीं, तो उनसे अपना ड्रामा खेलवाना उसकी मिट्टी खराब करना था।

इस कम्पनी के ऐक्टर माशा अल्लाह अपना जवाब नहीं रखते और इनके नाटककार सारे जमाने से धूम है। आप लोगों के हाथों में पड़कर यह ड्रामा धूम मचा देगा।

विनोद–एक तो लेखक साहब खुद शैतान से ज्यादा मशहूर हैं, उस पर यहाँ के ऐक्टरों का नाट्य-कौशल! शहर लुट जाएगा।

मस्तराम–रोज ही तो किसी-न-किसी कम्पनी का आदमी सिर पर सवार रहता है, मगर बाबू साहब किसी से सीधे मुँह बात नहीं करते।

विनोद–बस, एक यह कम्पनी है, जिसके तमाशों के लिए दिल बेकरार रहता है, नहीं तो जितने ड्रामें खेले जाते हैं, दो कौड़ी के। मैंने तमाशा देखना ही छोड़ दिया।

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