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प्रेमाश्रम (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :896
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8589

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‘प्रेमाश्रम’ भारत के तेज और गहरे होते हुए राष्ट्रीय संघर्षों की पृष्ठभूमि में लिखा गया उपन्यास है


जब वह मैजिस्ट्रेट थे, तो उन्होंने अपने असामियों पर इजाफा लगान का दावा किया था। महीनों मेरी खुशामद करते रहे कि मैं बाबू जी से डिगरी करवा दूँ। मैं क्या जानूँ, इनके चकमें में आ गयी। बाबू जी पहले तो बहुत आनाकानी करते रहे लेकिन जब मैंने जिद्द की तो राजी हो गये। कुशल यह हुई कि इसी बीच में मुझे उनके अत्याचार का हाल मालूम हो गया और डिगरी न होने पायी, नहीं तो कितने दीन असामियों की जान पर बन आती। दावा डिसमिस हो गया। इस पर यह इतने रूष्ट हुए कि समाचार-पत्रों में लिख-लिख कर बाबू जी को बदनाम किया। वह अब पत्रों में इनके धर्मोत्साह की खबरें पढ़ते थे, तो कहते थे, महाशय अब जरूर कोई-न-कोई स्वाँग रच रहे हैं। गोरखपुर सनातन-धर्म के उत्सव पर जो धूम-धाम हुई और बनारस में कृष्णलीला का जो नाटक खेला गया उनका वृत्तान्त पढ़कर बाबू जी ने खेद के साथ कहा था, यह महाशय रानी साहेबा को सब्ज बाग दिखा रहे हैं। इसमें आवश्य कोई-न-कोई रहस्य है। लाला जी मुझे मिल जाते तो ऐसा आड़े हाथों लेती कि वह भी याद करते।

गायत्री खिड़की की ओर ताक रही थी, यहाँ तक कि उसकी दृष्टि से खिड़की भी लुप्त हो गयी। उसके अन्तःकरण से पश्चात्ताप और ग्लानि की लहरें उठ-उठ कर कंठ तक आती थीं और उसके नेत्र-रूपी नौका को झकोरे दे कर लौट जाती थीं। वह संज्ञाहीन हो गयी थी। सारी चैतन्य शक्तियाँ शिथिल हो गयी थीं। श्रद्धा ने उसके मुख की ओर देखा, आँसू न रोक सकी। इस अभागिनी दुखिया पर उसे कभी इतनी दया न आयी। वहाँ बैठना तक अन्याय था। वह और कुछ न कर सकी, शीलमणि को अपने साथ ले कर दूसरे कमरे में चली गयी। वहाँ दोनों में देर तक बातचीत होती रहीं। श्रद्धा हत्या का सारा भार ज्ञानशंकर के सिर पर रखती थी। शीलमणि गायत्री को भी दोष का भागी समझती थी। दोनों ने अपने-अपने पक्ष को स्थिर किया। अन्त में श्रद्धा का पल्ला भारी रहा। इसके बाद शीलमणि ने अपना वृत्तान्त सुनाया। सन्तानोत्पत्ति के निर्मित कौन-कौन से यत्न किये, किन-किन दाइयों को दिखाया, किन-किन डॉक्टरों के दवा करायी? यहाँ तक कि वह श्रद्धा को अपने गर्भवती हो जाने का विश्वास दिलाने में सफल हो गयी, किन्तु महाशोक! सातवें महीने में गर्भपात हो गया, सारी आशाएँ धूल में मिल गयीं! श्रद्धा! ने सच्चे हृदय से समवेदना प्रकट की। फिर कुछ देर तक इधर-उधर की बातें होती रहीं। श्रद्धा ने पूछा– अब डिप्टी साहब का क्या इरादा है?

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