लोगों की राय

सदाबहार >> प्रेमाश्रम (उपन्यास)

प्रेमाश्रम (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :896
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8589

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

370 पाठक हैं

‘प्रेमाश्रम’ भारत के तेज और गहरे होते हुए राष्ट्रीय संघर्षों की पृष्ठभूमि में लिखा गया उपन्यास है


माया– तब तो ज़मींदार लोग असामियों को कुचल ही डालेंगे।

प्रेम– हाँ, और क्या?

माया– अभी से इस आन्दोलन की जड़ काट देनी चाहिए। आप इस पत्र का जवाब दे दें तो बाबू दीपकसिंह को अपना प्रस्ताव सभा में पेश करने का साहस न हो।

प्रेम– ज्ञानशंकर क्या कहेंगे?

माया– मैं जहाँ तक समझता हूँ, वह इस प्रस्ताव का सर्मथन न करेंगे।

प्रेम– हां, मुझे भी ऐसी आशा है।

मायाशंकर चचा की बातों से उनकी चित्त-वृद्धि को ताड़ गये।

वह जब से अपने इलाके का दौरा करके लौटा था, अक्सर कृषकों की सुदशा के उपाय सोचा करता था। इस विषय की कई किताबें पढ़ी थीं और डॉक्टर इर्फानअली से भी जिज्ञासा करता रहता था। प्रेमशंकर को असमंजस में देख कर उसे बहुत खेद हुआ। वह उनसे तो और कुछ न कह सका, पर उस पत्र का प्रतिवाद करने के लिए उसका मन अधीर हो गया। आज तक उसने कभी समाचार-पत्रों के लिए कोई लेख न लिखा था। डरता था, लिखते बने या न बने सम्पादक छापें या न छापें। दो-तीन दिन वह इसी आगा-पीछा में पड़ा रहा। अन्त में उसने उत्तर लिखा और सकुचाते, कुछ डरते डॉक्टर इर्फानअली को दिखाने ले गया। डॉक्टर महोदय ने लेख पढ़ा तो, चकित हो कर पूछा– यह सब तुम्हीं ने लिखा है?

माया– जी हाँ, लिखा तो है, पर बना नहीं।

इर्फान– वाह! इससे अच्छा तो मैं भी नहीं लिख सकता। यह सिफत तुम्हें बाबू ज्ञानशंकर से विरासत में मिली है।

माया– तो भेज दूँ, जायेगा?

इर्फान– छपेगा क्यों नहीं? मैं खुद भेज देता हूँ।

प्रेमशंकर रोज पत्रों को ध्यान से देखते कि दीपकसिंह के पत्र का किसी ने उत्तर दिया या नहीं, पर आठ-दस दिन बीत गये और आशा न पूरी हुई। कई बार उनकी इच्छा हुई कि कल्पित नाम से इस लेख का उत्तर दूँ। लेकिन कुछ तो अवकाश न मिला, कुछ चित्त की दशा अनिश्चित रही, न लिख सके। बारहवें दिन उन्होंने पत्र खोला तो मायाशंकर का लेख नजर आया। आद्योपान्त पढ़ गये। हृदय में एक गौरवपूर्ण उल्लास का आवेग हुआ। तुरन्त श्रद्धा के पास गये और लेख पढ़ सुनाया। फिर इर्फानअली के पास गये। उन्होंने पूछा– कोई खबर है क्या?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book