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संग्राम (नाटक)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :283
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8620

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मुंशी प्रेमचन्द्र द्वारा आज की सामाजिक कुरीतियों पर एक करारी चोट

पाँचवां दृश्य

(प्रातःकाल का समय। राजेश्वरी अपनी गाय को रेवड़ में ले जा रही है। सबलसिंह से मुठभेड़।)

सबल– आज तीन दिन से मेरे चंद्रमा बहुत बलवान हैं। रोज एक बार तुम्हारे दर्शन हो जाते हैं। मगर आज मैं केवल देवी के दर्शनों ही से सन्तुष्ट न हूंगा। कुछ वरदान भी लूंगा।

(राजेश्वरी असमंजस में पड़ कर इधर-उधर ताकती है और सिर झुका कर खड़ी हो जाती है।)

सबल– देवी, अपने उपासकों से यों नहीं लाजाया करतीं। उन्हें धीरज देती है, उनकी दुख-कथा सुनती हैं, उन पर दया की दृष्टि फेरती है। राजेश्वरी, मैं भगवान को साक्षी दे कर कहता हूँ कि मुझे तुमसे जितनी श्रद्धा और प्रेम है उतनी किसी उपासक को अपनी इष्ट देवी से भी न होगी। मैंने जिस दिन से तुम्हें देखा है उसी दिन से अपने हृदय-मन्दिर में तुम्हारी पूजा करने लगा हूँ। क्या मुझ पर जरा भी दया न करोगी?

राजेश्वरी– दया आपकी चाहिए, आप हमारे ठाकुर है। तो मैं तो आपकी चेरी हूं। अब मैं जाती हूं। गाय किसी के खेत में बैठ जाएगी। कोई देख लेगा तो अपने मन में न जाने क्या कहेगा।

सबल– तीनों तरफ अरहर और ऊख के खेत हैं। कोई नहीं देख सकता। मैं इतनी जल्दी तुम्हें न जाने दूंगा। आज महीनों के बाद मुझे यह सुवसर मिला है, बिना वरदान लिये न छोड़ूगा। पहले यह बतलाओ कि इस काक मंडली में तुम जैसी हंसनी क्यों कर आ पड़ी है? तुम्हारे माता-पिता क्या कहते है?

राजेश्वरी– यह कहानी कहने लगूंगी तो बड़ी देर हो जायेगी। मुझे यहाँ कोई देख लेगा तो अनर्थ हो जायेगा।

सबल– तुम्हारे पिता भी खेती करते हैं?

राजेश्वरी– पहले बहुत दिनों तक टापू में रहे। वहीं मेरा जन्म हुआ। जब वहां सरकार ने उनकी जमीन छीन ली तो यहाँ चले आये। तब से खेती-बारी करते हैं। माता का देहान्त हो गया। मुझे याद आता है, कुंदन का-सा रंग था। बहुत सुन्दर थीं।

सबल– समझ गया। (तृष्णापूर्ण नेत्रों से देख कर) तुम्हारा तो इन गंवारों में रहने से जी घबराता होगा। खेती-बारी की मेहनत भी तुम जैसी कोमलांगी सुन्दर को बहुत अखरती होगी।

राजेश्वरी– (मन में) ऐसे तो बड़े दयालु और सज्जन आदमी हैं, लेकिन निगाह अच्छी नहीं जान पड़ती। इनके साथ कुछ कपट-व्योहार करना चाहिए। देखूं किस रंग पर चलते हैं। (प्रकट) क्या करूँ भाग्य में जो लिखा था वह हुआ।

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