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धर्म एवं दर्शन >> आदित्य हृदय स्तोत्र

आदित्य हृदय स्तोत्र

अगस्त्य ऋषि

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :34
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9544

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राम रावण युद्ध के समय अगस्त्य ऋषि द्वारा बतलाई गई सूर्य आराधना। शक्ति और सामर्थ्य की प्राप्त के लिए की जाने वाली आराधना।


नाशयत्येष वै भूतं  तमेव  सृजति प्रभुः।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः।।22।।


nashayat yesha vai bhutam tadeva srijati prabhuh|
payatyesha tapatyesha varshatyesha gabhastibhih || 22

'रघुनन्दन! ये भगवान सूर्य ही सम्पूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं। ये ही अपनी किरणों से गर्मी पहुँचाते और वर्षा करते हैं।' ।।22।।

Salutations to the Lord who creates heat by his brilliant rays. He alone creates, sustains and destroys all that has come into being. Salutations to Him who by His rays consumes the waters, heats them up and sends them down as rain again. 22

एष   सुप्तेषु   जागर्ति   भूतेषु   परिनिष्ठितः।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्।।23।।


esha supteshu jagarti bhuteshu parinishthitaha |
esha evagnihotram cha phalam chaivagnihotrinam || 23

'ये सब भूतों में अन्तर्यामीरूप से स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं। ये ही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाले फल हैं।' ।।23।।

Salutations to the Lord who abides in the heart of all beings keeping awake when they are asleep. Verily he is the Agnihotra , the sacrificial fire and the fruit gained by the worshipper of the agnihotra. 23

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