धर्म एवं दर्शन >> आदित्य हृदय स्तोत्र आदित्य हृदय स्तोत्रअगस्त्य ऋषि
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राम रावण युद्ध के समय अगस्त्य ऋषि द्वारा बतलाई गई सूर्य आराधना। शक्ति और सामर्थ्य की प्राप्त के लिए की जाने वाली आराधना।
एतच्छ्रुत्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तदा।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान्।।28।।
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्।।29।।
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत्।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्।।30।।
etachchrutva mahateja nashtashoko'bhavattada |
dharayamasa suprito raghavah prayatatmavan || 28
adityam prekshya japtva tu param harshamavaptavan |
trirachamya shuchirbhutva dhanuradaya viryavan || 29
ravanam prekshya hrishtatma yuddhaya samupagamat |
sarvayatnena mahata vadhe tasya dhrito'bhavat || 30
उनका उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्रीरामचन्द्रजी का शोक दूर हो गया। उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्धचित्त से आदित्यहृदय को धारण किया और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान सूर्य की ओर देखते हुए इसका तीन बार जप किया। इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ। फिर परम पराक्रमी रघुनाथजी ने धनुष उठाकर रावण की ओर देखा और उत्साहपूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढ़े। उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय किया।। 28-30।।
Having heard this, that great warrior Raghava, feeling greatly delighted, became free from grief. His clouds of worry thus dispelled, the lustrous Lord Rama obeyed the sayings of sage Agastya with great happiness.With composed mind he retained this hymn in his memory, ready to chant the Aditya-Hridayam. Having performed Achamanam (sipping water thice) and being purified, Rama gazing at the sun with devotion, recited the hymn Aditya-Hridayam thrice, then that great hero Raghava was thrilled and lifted his bow. Lord Rama thus cheered, seeing Ravana coming to fight, put forth all his effort with a determination to kill him. (Ravana) 28-30
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