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अंतिम संदेश

खलील जिब्रान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9549

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विचार प्रधान कहानियों के द्वारा मानवता के संदेश

(9)


और एक सन्ध्या को एक तीव्र आंधी ने उस स्थान के दर्शन किये, और अलमुस्तफा तथा उसके नौ शिष्य अन्दर मकान में आ गए और आग के चारों ओर बैठ गए। वे निश्चल और शान्त थे।

तब शिष्यों में से एक ने कहा, "मैं अकेला हूं, प्रभो, और समय के पंजे जोर-जोर से मेरे वक्षःस्थल को पीट रहे हैं।"

अलमुस्तफा उठा और उन लोगों के बीच खडा़ हो गया औऱ उसने ऐसी आवाज में कहना आरम्भ किया, मानो वह तीव्र आंधी की आवाज हो, "अकेला! तो उसके लिए क्या? तुम अकेले आये थे, और अकेले ही तुम कोहरे में समा जाओगे।”

"इसलिए अपना प्याला एकान्त में औऱ खामोशी के साथ पियो। शरद के दिनों ने विभिन्न ओठों को भिन्न-भिन्न प्याले प्रदान किये हैं और उनको कड़वी तथा मीठी मदिरा से भरा। वैसे ही उन्होंने तुम्हारे प्याले को भी किसी न किसी प्रकार की मदिरा से भरा है।”

"अपने प्याले को अकेले पियो, यद्यपि उसमें तुम्हारे स्वयं के रक्त और आंसुओं का स्वाद है, और ‘प्यास' के उपहार के लिए जीवन की प्रशंसा करो क्योंकि बिना ‘प्यास' के तुम्हारा ह्रदय एक उजडे़ हुए समुद्र के किनारे के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है, संगीतविहीन और तूफानरहित।”

"अपना प्याला अकेले पियो, औऱ उसे खुशी से पियो।”

"उसे अपने मस्तक से ऊपर उठाओ और उनके लिए खूब पियो, जोकि अपने प्याले अकेले पीते हैं।”

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