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अंतिम संदेश

खलील जिब्रान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9549

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विचार प्रधान कहानियों के द्वारा मानवता के संदेश

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और एक दिन जबकि आकाश सूर्योदय के कारण अभी पीला ही था, उन सबने इकट्ठे बगीचे में प्रवेश किया और पूर्व की ओर देखने लगे तथा उगते हुए सूर्य के सम्मुख खामोश खड़े हो गए। कुछ क्षण पश्चात् अलमुस्तफा ने अपने हाथ से एक ओर इशारा किया और बोला, "एक ओस की बूंद में भोर के सूर्य का प्रतिबिम्ब सूर्य से कम नहीं है। तुम्हारी आत्मा में जीवन का प्रतिबिम्ब जीवन से कम नहीं है। ओस की बूंद प्रकाश को प्रतिबिम्ब करती है, क्योंकि वह औऱ प्रकाश एक हैं, और तुम जीवन को प्रतिबिम्बित करते हो, क्योंकि तुम और जीवन एक हो।”

"जब तुम अन्धकार से घिरे हुए हो तो कहो, 'इस अन्धकार का उदय अभी तक उत्पन्न ही नहीं हुआ है, और यद्यपि मुझे रात्रि की पीडा़ पूर्णतः घेरे हुए है, फिर भी मुझ में प्रकाश अवश्य जन्मेगा।' कुमुदिनी के पुष्प की सन्ध्या में अपने आकार को गोल करती हुई ओस की बूंद तुम्हारे स्वयं के ईश्वर के ह्रदय में जमा हो जाने से भिन्न नहीं है।”

"यदि एक ओस की बूंद कहे, 'किन्तु एक हजार वर्ष में मैं भी केवल ओस की बूंद ही हूं; तो तुम कहो और उत्तर दो, 'क्या तू यह नहीं जानती कि तेरे वक्ष में समस्त वर्षों का प्रकाश प्रज्जलित है?"

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