लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> अंतिम संदेश

अंतिम संदेश

खलील जिब्रान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9549

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

9 पाठक हैं

विचार प्रधान कहानियों के द्वारा मानवता के संदेश

"और क्या गायक अपने स्वयं के गान की निन्दा कर सकता है, यह कहकर कि, अब अपनी प्रतिध्वनि की गुफा को वापस लौट जाओ, जहां से तुम आये थे, क्योंकि तुम्हारी आवाज मेरी सांस चाहती है?'

"और क्या एक गड़रिया अपनी भेड़ के बच्चे से यह कहेगा,  'मेरे पास कोई चरागाह नहीं है, जहां कि मैं तुझे ले जाऊं, इसलिए कट जा और इसके निमित्त बलिदान हो जा?'

"नहीं, मेरे मित्र, इन सब बातों के उत्तर प्रश्न उठने से पहले ही दे दिए जाते हैं, और तुम्हारी सपनों की भांति जबकि तुम सोए रहते हो, पूर्ण हो जाते हैं।”

"हम विधान के अनुसार, जोकि पुरातन और अमर है, एक दूसरे के सहारे जीते हैं इस प्रकार हमें प्रेममय कृपा पर जीवित  रहना भी चाहिए। हम अपनी स्वतन्त्रता में एक-दूसरे को खोजते हैं। और तभी हम रास्ते पर घूमते हैं, जबकि हमारे पास कोई अंगीठी नहीं होती, जिसके सहारे बैठ सकें।”

"मेरे मित्रो और मेरे भाइयो, विस्तीर्ण पथ तो तुम्हारा हमराही ही है।”

"लताएं, जोकि वृक्षों पर जीवित रहती हैं, रात्रि की मीठी खामोशी में पृथ्वी से दूध पाती हैं, पृथ्वी अपने शान्त सपनों में सूर्य के वक्षःस्थल से दूध चूसती है।”

"और सूर्य ऐसे ही, जैसे कि मैं और तुम और दूसरे सब, जो यहाँ हैं, उस राजकुमार के प्रीतिभोज में बराबर आदर के साथ बैठते हैं, जिसके द्वार हमेशा खुले रहते हैं और जिसका दस्तर-ख्वान हमेशा बिछा रहता है।”

"मानस, मेरे मित्र, जो कुछ भी यहां जीवित है, उस पर जीवित रहता है, जोकि यहां है, औऱ सबकुछ यहां विश्वास पर जीवित है और अनन्त और सर्वोच्च की कृपा पर।"

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book