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अंतिम संदेश

खलील जिब्रान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9549

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विचार प्रधान कहानियों के द्वारा मानवता के संदेश

"तुम कल्पना में बादलों तक पहुंच जाओगे औऱ उनकी ऊंचाई का अनुमान भी लगा लोगे, और तुम विस्तीर्ण सागर को पार कर लोगे तथा उसकी दूरी भी बता दोगे; किन्तु मैं तुमसे कहता हूं कि जब तुम पृथ्वी में एक बीज देखते हो तो अधिक ऊंचाई तक पहुंचते हो, और जब तुम प्रातः की सुन्दरता अपने पडो़सी से बताते हो तो अनेक सागर पार करते हो।”

"अनेक समय तुम अनन्त ईश्वर के गीत गाते हो, और फिर भी सत्य यह है कि तुम कोई गाना नहीं सुन पाते। क्या इसलिए कि तुम गाती हुई चिड़ियों को सुन सको, और शाखाओं से गिरती हुई पत्तियों के गीत को भी, जबकि वायु गुजरती है। औऱ भूलो मत, मेरे मित्र, ये पत्तियां तभी गाती हैं, जबकि शाखाओं से अलग हो जाती हैं।"

“फिर मैं तुमसे कहता हूं कि ईश्वर के विषय में, जोकि तुम्हारा सबकुछ है, इतनी स्वतन्त्रतापूर्वक बातें न करो, और कुछ कहो औऱ एक-दूसरे को समझो, पड़ोसी एक पड़ोसी को, एक देवता एक देवता को।”

"घोंसले में बच्चे को कौन दाना खिलायेगा, यदि मां चिड़िया आकाश में उड़ती रहे? और खेत में कौन सा पुष्प परिपूर्ण हो जायगा, जबतक कि मधु-मक्खी द्वारा दूसरे पुष्प से गर्भ न प्राप्त कर ले।”

"जबकि तुम अपनी नन्हीं आत्मा में खो जाते हो, तभी तुम आकाश को, जिसे कि तुम ईश्वर कहते हो, पाते हो। यह क्या इसलिए कि तब तुम अपनी अनन्त आत्मा में रास्ते ढूंढ़ सकते हो, और क्या इसलिए कि तब तुम बेकार रह सको और मार्ग ढूंढ़ सको?”

"मेरे नाविको और मेरे मित्रो, यह बुद्धिमत्ता है कि हम ईश्वर के विषय में, जिसे कि हम समझने में असमर्थ हैं, कम बातें करें और एक-दूसरे के विषय में अधिक, जिसको सम्भवतः हम समझ सकें। फिर भी मैं तुम्हें यह बताना चाहूंगा कि हम ईश्वर की श्वास की एक सुगन्ध हैं। हम ईश्वर ही हैं, पत्ती में, पुष्प में और प्रायःफल में भी।"

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