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अंतिम संदेश

खलील जिब्रान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9549

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विचार प्रधान कहानियों के द्वारा मानवता के संदेश

(13)


और एक ने, जोकि मन्दिर में सेवाएं कर चुका था, विनती करते हुए कहा, "हमें शिक्षा दें, प्रभो कि हमारी वाणी ऐसी बन जाय, जैसे कि शब्द लोगों के लिए एक भजन और सुगंधित धूप हैं।"

और अलमुस्तफा ने उत्तर दिया और कहा, "तुम अपने शब्दों से ऊपर उठोगे, किन्तु तुम्हारा पथ एक संगीत और सुगन्ध बनकर रहेगा- एक गीत प्रेमियों के लिए और उन सबके लिए, जोकि सेविकाएं हैं, और एक सुगन्ध उनके लिए, जोकि अपना जीवन एक बगीचे में बितायेंगे।”

"किन्तु तुम अपने शब्दों से ऊपर एक शिखर तक उठोगे, जहाँ सितारों के टुकडे़ बरसते हैं, और तुम अपने हाथों को फैलाये रहोगे जब तक कि वे भर न जायें। तब तुम नीचे लेट जाओगे और सो जाओगे, जैसे श्वेत चिडि़या का बच्चा सफेद घोंसले में सोता है, और फिर तुम अपने कल का सपना देखोगे जैसे कि हलका नीला फूल बहार का सपना देखता है।”

"हां तुम अपने शब्दों से अधिक गहरे जाओगे, तुम खोये हुए स्रोतों के अन्त को खोज निकालोगे और तुम गहराइयों की मिटती हुए आवाजों को, जिन्हें कि अब तुम सुन भी नहीं पाते, प्रतिध्वनित करती हुई एक छिपी कंदरा हो।”

"तुम अपने शब्दों से गहरे जाओगे, हां सब आवाजों से गहरे- पृथ्वी के हृदय तक, और वहां तुम उस ईश्वर के साथ अकेले रहोगे, जोकि आकाश-गंगा पर भी घूमता है।"

और कुछ क्षण पश्चात शिष्यों में से एक ने पूछा, "प्रभो, हमें अस्तित्व के विषय में बताइए, और यह 'होना, क्या है?’

और अलमुस्तफा ने उस शिष्य पर एक लम्बी निगाह डाली और उसे प्यार किया। और तब वह खडा़ हो गया औऱ उनसे कुछ दूर टहलता हुआ चला गया। फिर लौटकर उसने कहा, "इस बगीचे में मेरे माता-पिता लेटे हुए हैं। वे जीवित हाथों द्वारा दफना दिये गए हैं, और इसी बगीचे में गत वर्ष के बीज भी गडे़ हुए हैं, जोकि वायु के पंखों द्वारा यहां लाये गए थे। एक हजार बार मेरे माता-पिता यहाँ दफनाये जायंगे, एक हजार बार मैं, तुम और ये पुष्प भी एक साथ इसी वाटिका में आयेंगे, जैसे कि अब आये हैं; और हम जीवन को प्यार करते 'होंगे', हम शून्य के सपने देखते 'होंगे, और हम सूर्य की ओर बढते 'होंगे'।

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