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अंतिम संदेश

खलील जिब्रान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9549

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विचार प्रधान कहानियों के द्वारा मानवता के संदेश

"क्योंकि तुम भी तो जड़ों की भांति ही हो, और जड़ों की तरह ही सरल हो, इसीलिए तो पृथ्वी द्वारा तुम्हें ज्ञान प्राप्त हुआ है। और तुम खामोश हो, फिर भी तुम्हारे पास तुम्हारी भावी शाखाओं में चार वायुओं का संगीत व्याप्त है।”

"तुम दुर्बल हो और तुम निराकार हो, फिर भी तुम विशाल सिन्दूर के वृक्ष का आरम्भ हो और आकाश पर बने अर्ध चित्रित सरई के वृक्ष का भी।”

"मैं फिर से कहता हूं, तुम काली मिट्टी तथा घूमते आकाश के अन्त में एक जड़ ही तो हो, और अनेक बार मैंने तुम्हें प्रकाश के साथ नृत्य करने के लिए उठते हुए देखा है, किन्तु मैंने तुम्हें वस्त्रहीन दशा में लज्जायुक्त भी देखा है। पर सभी जड़ें लज्जाशील होती हैं। उन्होंने अपने हृदय को इतना गहरा छिपा लिया है कि वे यह भी नहीं जानतीं कि उन्हें अपने हृदय का क्या करना चाहिए।”

"किन्तु वसन्त ऋतु आयेगी और वसन्त चंचल सुन्दरी है, वह पहाडि़यों और मैदानों को उपजायेगी।"

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