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अंतिम संदेश

खलील जिब्रान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9549

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विचार प्रधान कहानियों के द्वारा मानवता के संदेश

"और अब तुम्हारे लिए, जिनके हाथ उन सब वस्तुओं को बनाते और खोजते हैं, जोकि हमारे दिन और रात के आराम के लिए आवश्यक हैं।”

"होने का अर्थ है एक प्रकट उंगलियों वाला जुलाहा बनना, एक बुनने वाला, जो प्रकाश और दूरी को ध्यान में रखता हैं, एक हलवाहा बनना और यह ध्यान में रखना कि प्रत्येक बीज के बोने के साथ-साथ तुम एक खजाना छिपा रहे हो; एक मछुआ तथा शिकारी बनना, ह्रदय में मछली और जानवरों के लिए दया रखते हुए, और इससे भी अधिक दया मनुष्य की भूख और आवश्यकताओं के लिए रखते हुए।”

"मेरे साथियों और मेरे मुरब्बियों, तुच्छ नहीं, साहसी बनो; संकुचित नहीं, विस्तीर्ण बनो, और तबतक, जबतक कि मेरी अंतिम घडी़ और तुम्हारा अनन्त सत्व न बन जाय।”

उसने बोलना बन्द कर दिया। उन नौ-के-नौ पर एक गहरी निस्तब्धता छा गई, उनके हृदय उसकी ओर से फिर गए, क्योंकि वे उसके शब्दों को समझ नहीं पा रहे थे।”

और देखो, तीन मनुष्य, जो नाविक थे, समुद्र की ओर जाना चाहते थे, वे जिन्होंने मन्दिर में सेवाएं की थीं, अपने देवालय को जाने के इच्छुक थे, और उन्होंने, जोकि उसके बचपन के खेल के साथी थे, हाट का रास्ता पसन्द किया। उसके शब्दों के लिए बे सब बहरे थे, इसलिए उन शब्दों की आवाज इसी प्रकार उसीके पास वापस लौट गई, जैसे कि थके और बिना घर के पक्षी शरण के लिए स्थान टटोलते हैं।

औऱ अलमुस्तफा उनसे कुछ दूर बगीचे में चला गया। उसने उन पर एक बार निगाह भी नहीं डाली। और उन्होंने  आपस में तर्क करना प्रारम्भ कर दिया, इसलिए कि अपने वहां से जाने के लिए बहाना ढूंढ़ लें।

और देखो, वे सब मुड़े और प्रत्येक अपने-अपने स्थान को लौट गया, और इस प्रकार अलमुस्तफा, अनेकों में एक और सबका प्रिय फिर अकेला रह गया।

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