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अंतिम संदेश

खलील जिब्रान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9549

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विचार प्रधान कहानियों के द्वारा मानवता के संदेश

(16)


और अब सन्ध्या हो गई थी।

वह पहाड़ों पर पहुंच गया। उसके पैर कुहरे के पास ले आये थे। वह चट्टानों और सफेद सिरों के वृक्षों के बीच, जोकि अब चीजों से छिपे हुए थे, खड़ा था और वह बोलाः

"ओ कुहरे, मेरे भाई,

श्वेत श्वास अभी तक किसी आकार में नहीं ढली है,

मैं तु्म्हारे पास वापस आ गया हूं,

एक श्वेत श्वास औऱ ध्वनिविहीन बनकर—

एक शब्द भी अभी तक नहीं बोला।


"ओ कुहरे मेरे पंखों वाले भाई कुहरे, हम अब एक साथ हैं,

और साथ ही रहेंगे, जीवन के अगले दिन तक,

कौनसा प्रभात तुम्हें ओस की बूंद बनाकर बगीचे में लिटायेगा,

और मुझे एक बच्चा बनाकर एक स्त्री के वक्षःस्थन पर,

औऱ हम एक दूसरे को याद रखेंगे।


'ओ कुहरे, मेरे भाई, वापस आ गया हूं

एक हृदय अपनी गहराइयों में सुनता हुआ,

जैसा कि तुम्हारा ह्रदय,

एक धड़कती हुई आकांक्षा, औऱ

तुम्हारी उद्देश्यहीन आकांक्षा की भांति,

एक विचार जो अभी तक स्थिर नहीं हु्आ,

जैसे कि तुम्हारा विचार।

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