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अंतिम संदेश

खलील जिब्रान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9549

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विचार प्रधान कहानियों के द्वारा मानवता के संदेश


"ओ कुहरे, मेरे भाई, मां के पहले पुत्र,

मेरे हाथ अभी भी उन चीजों को पकडे़ हुए हैं,

जोकि तुमने मुझे बिखेरने के लिए दिये थे

और मेरे ओंठ सीये हुए हैं उस गति पर,

जोकि तुमने मुझे गाने के लिए दी थी;

और मैं तुम्हारे लिए कोई फल नहीं लाया,

औऱ न तुम्हारे पास मैं कोई प्रतिध्वनि लेकर आया हूं,

क्योंकि मेरे हाथ अन्धे और मेरे ओठ खामोश थे।


"ओ कुहरे मेरे भाई, मैने दुनियां से बहुत ज्यादा प्यार किया,

और दुनिया ने मुझे वैसा ही प्यार दिया,

क्योंकि मेरी समस्त मुस्कराहटें दुनिया के ओठों पर थीं,

औऱ उसके समस्त आंसू मेरी आंखों में।

फिर भी हमारे बीच एक खामोशी की खाई थी,

जोकि दुनिया नहीं भरना चाहती थी,

और जिसे मैं पार नहीं कर सकता था।

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