ई-पुस्तकें >> अंतिम संदेश अंतिम संदेशखलील जिब्रान
|
6 पाठकों को प्रिय 9 पाठक हैं |
विचार प्रधान कहानियों के द्वारा मानवता के संदेश
"ओ कुहरे, मेरे भाई मेरे अमर भाई कुहरे,
मैंने पुराने गीत अपने बच्चों को सुनाये,
और उन्होंने सुने और उनके चेहरे पर आश्चर्य व्याप्त था,
किन्तु कल ही वे यकायक गीत भूल जायंगे,
औऱ मैं नहीं जानता था कि किसके पास तक
वायु गीत नहीं ले जायगी।
और हालांकि वह गीत मेरा अपना नहीं था,
लेकिन वह मेरे दिल में समा गया,
और मेरे ओठों पर कुछ देर के लिए खेलता रहा।
"ओ कुहरे, मेरे भाई, हालांकि यह सब गुजर गया,
मैं शान्ति में हूं।
मेरे विचार में यह काफी था कि उनके लिए गाया जाय,
जोकि जन्म ले चुके हैं।
और अगर्चे यह गाना मेरा अपना नहीं हैं,
लेकिन वह मेरे दिल की सबसे गहरी ख्वाहिश है।
"ओ कुहरे, मेरे भाई कुहरे,
मैं तुम्हारे साथ अब एक हूं।
अब मैं स्वयं ‘मैं’ नहीं रहा ।
दीवारें गिर चुकी हैं,
जंजीरें टूट चुकी हैं,
मैं तुम्हारे पास आने के लिए ऊपर उठ रहा हूं,
एक कुहरा बनकर, और हम साथ-साथ सागर के ऊपर तैरेंगे,
जीवन के दूसरे दिन तक,
जबकि प्रभात तुम्हें ओस की बूंद बनाकर बगीचे में,
औऱ मुझे एक बच्चा बनाकर एक स्त्री के वक्षःस्थल पर लिटा देगा।"
|