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अंतिम संदेश

खलील जिब्रान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9549

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विचार प्रधान कहानियों के द्वारा मानवता के संदेश

“अक्सर हम जीवन को कठोर नामों से पुकारते हैं, किन्तु तभी जबकि हम स्वयं कटु और अन्धकारमय होते हैं। हम उसे शून्य और निरर्थक समझते हैं, किन्तु तभी, जबकि हमारी आत्मा निर्जन स्थानों में भटकती होती है, और हमारा ह्रदय स्वयं की अत्यधिक चेतना की मदिरा पिये हुए होता है।”

"जीवन अगाध और ऊंचा और दूरस्थ है, और हालांकि तुम्हारी फैली हुई निगाह भी उसके पैरों तक नहीं पहुंच पाती, फिर भी वह तुम्हारे पास है, और तुम्हारी सांस की सांस ही उसके दिल तक पहुंचती है, तुम्हारी परछाई की परछाई ही उनके चेहरे को पार करती है, लेकिन तुम्हारी हल्की-से-हल्की पुकार की प्रतिध्वनि उसके वक्षःस्थल पर एक झरना और एक शरद ऋतु बन जाती है।”

"और जिन्दगी आवरण से ढकी हुई और छिपी हुई है, जैसे कि तुम्हारी अनन्त आत्मा तुमसे छिपी हुई और आवरण के पीछे है। फिर भी जब जिन्दगी बोलती है तो सारी वायु शब्द बन जाती है, और जब वह फिर बोलती है, तुम्हारे ओठों की मुस्कान और आँखों के आंसू भी शब्दों में परिवर्तित हो जाते हैं जब वह गाती है तो बहरे सुनते हैं और मन्त्र-मुग्ध हो जाते हैं, और जब वह चलती हुई आती है, तो अन्धे उसे देखते हैं और विस्मित हो उठते हैं, और विस्मय और आश्चर्य से उसका पीछा करते हैं।”

वह चुप हो गया एक अनन्त खामोशी ने सभी लोगों को घेर लिया। उस खामोशी में था एक अज्ञात गान। उन लोगों के एकाकीपन और निरन्तर पीड़ा को सान्त्वना प्राप्त हो गई थी।

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