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अंतिम संदेश

खलील जिब्रान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9549

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विचार प्रधान कहानियों के द्वारा मानवता के संदेश

(2)


और उसने उसी क्षण उन्हें वहीं छोड़ दिया और उस बगीचे के रास्ते पर चल पडा़, जोकि उसके माता-पिता का था, जहां वे अनन्त निद्रा में लीन थे-वे और उसके पूर्वज।

और वहां ऐसे भी बहुत से लोग थे, जो उनके पीछे-पीछे जाना चाहते थे यह सोचकर कि वह एक अरसे के बाद घर लौटा है और अकेला है, उसका एक भी सन्बन्धी जीवित नहीं था, जोकि उनके नियमानुसार प्रीतिभोजों से उसका स्वागत करता।

किन्तु उसके जहाज के प्रधान नाविक ने उन्हें समझाया और कहा, "उन्हें अपने रास्ते पर अकेले जाने दो, क्योंकि उनकी रोटी तो एकाकीपन की रोटी है, और उनके प्याले में यादों की मदिरा है, जिसे वह अकेले ही पियेंगे।"

और उनके नाविकों ने अपने बढ़ते हुए कदम रोक लिये, क्योंकि वे जानते थे कि उनके प्रधान ने जो कुछ उनसे कहा है, सच है। उन सबने भी जोकि समुद्र की दीवार पर झकट्ठे हुए थे, अपनी इच्छा के पैरों को लौटा लिया। केवल करीमा ही उसके एकाकीपन और उसकी यादों को सोचती हुई कुछ दूर हटकर उसके पीछे चल दी। वह बोली कुछ नहीं, केवल कुछ दूर चलकर मुडी़ और अपने घर को चली गई। वह अपने बगीचे में बादाम के पेड़ के नीचे जाकर फ्रूट-फूटकर रो पडी़, किन्तु वह नहीं जानती थी कि किसलिए रोई।

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