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अंतिम संदेश

खलील जिब्रान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9549

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विचार प्रधान कहानियों के द्वारा मानवता के संदेश

(3)


और अलमुस्तफा आगे बढा और उसने अपने माता-पिता का बगीचा खोज लिया। वह बगीचे के अन्दर चला गया और अन्दर से दरवाजा बन्द कर लिया, जिससे कि उसके पीछे कोई आदमी भीतर न आ सके।

और चालीस दिन और चालीस रात वह उस मकान और बगीजे में अकेला रहा। कोई भी वहाँ नहीं आया- दरवाजे के करीब भी नहीं आया, क्योंकि वह बन्द था और सब लोग जानते थे कि उसे अकेला ही रहना था।

चालीस दिन और चालीस रात बीत जाने के बाद अलमुस्तफा ने दरवाजा खोल दिया, जिससे कि लोग अन्दर आ सकें।

नौ आदमी उसके साथ रहने के लिए अन्दर आये-तीन नाविक उसके स्वयं के जहाज से, तीन वे, जिन्होंने मन्दिर में सेवाएं की थीं, और तीन वे, जो कि उनके बचपन के खेल के साथी थे, और ये उसके शिष्य थे।

एक दिन सवेरे उसके शिष्य उसके चारों ओर बैठ गए। उसकी आंखों में अनन्त दूरी और स्मृतियां बसी हुई थीं। और वह शिष्य, जिसका नाम हाफिज था उससे बोला, "प्रभो, इर्फालीज नगर के विषय में कुछ बतायें और उन देशों के विषय में भी जहां कि आपने ये बारह साल बिताये हैं।”

"अलमुस्तफा खामोश ही बना रहा। उसने पहाड़ियों की ओर देखा और अपनी आंखे अनन्त शून्य में गडा़ दी। उसकी खामोशी में एक उद्वेलन था। तब उसने कहा, "मेरे मित्रो और मेरे हमराहियो। वह देश भी दयनीय है, जोकि अन्ध-विश्वासों से भरा है किन्तु धर्म से शून्य है।”

"वह देश भी दयनीय है, जोकि उस कपड़े को पहनता है, जिसे वह स्वयं नहीं बुनता, और वह उस मदिरा को पीता है, जो उसके स्वयं के मदिरा के कोल्हुओं से नही बहती।"

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