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अंतिम संदेश

खलील जिब्रान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9549

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विचार प्रधान कहानियों के द्वारा मानवता के संदेश

(4)


एक बोला, "हमें वे बातें बतायें, जोकि अभी भी आपके हृदय में भटक रही हैं।"

और उसने उस शिष्य की ओर देखा। उसकी आवाज में तारों के गीत जैसा स्वर व्याप्त था। उसने कहा, "अपने जागृत स्वप्न में जबकि तुम खामोश होते हो और अपनी अन्तरात्मा की आवाज को सुनते हो, तुम्हारे विचार हिम के टुकडों की भांति गिरते और फड़फडा़ते हैं और तुम्हारे समस्त अंगों की आवाजों को श्वेत खामोशी से ढंक देते हैं।”

"और जागृत सपने क्या हैं, सिवा मेघ के, जोकि तुम्हारे ह्रदय के आकाश-वृक्ष पर अंकुरित होता है और खिलता है। तुम्हारे विचार क्या हैं, सिवा पक्षियों के जिन्हें कि तुम्हारे हृदय की आंधी पहाड़ियों और उसके मैदानों पर बिखेर देती है। और जैसे कि तुम शान्ति की प्रतीक्षा तबतक करते हो जबतक कि तुम्हारे अन्तर का निराकार आकार न ग्रहण कर ले, इसी प्रकार मेघ इकट्ठा होता है और अपनी शक्ति को संचय करता है, जबतक कि ईश्वरीय उंगलियां उसके नन्हें सूर्य, चन्द्रमा और सितारे बनने की पुरातन इच्छा को पूर्ण न कर दें।”

"तब सारकिस, जोकि अर्ध-सन्देही था, बोला, "किन्तु बसन्त आयेगा और हमारे सपनों का सम्पूर्ण हिम पिघल जायगा। हमारे विचार भी पिघल जायेंगे और कुछ भी तो नहीं बचेगा।”

और अलमुस्तफा ने यह कहकर उत्तर दिया, "जब बसन्त अपनी प्रेयसी को ढूंढने सोतों, वाटिकाओं तथा अंगूर के बगीचों में आयेगा, तब वास्तव में हिम पिघल जायेगा और झरना बनकर घाटियों में नदी को ढूंढता दौड़ेगा और सदाबहार तथा लारेल के वृक्षों के लिए साकी का नाम करेगा।”

"इसी प्रकार तुम्हारे हृदय का हिम भी पिघल जायगा, जबकि तुम्हारा बसन्त आयेगा और इस प्रकार तुम्हारे रहस्य झरने बनकर बह उठेंगे घाटियों में, जीवन की नदी में जा मिलने के लिए और उन्हें अनन्त सागर तक ले जाने के लिए।”

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