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असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

पत्र तो मिल गया, लेकिन हवाएं नहीं मिली। पेटी खोली, वहाँ तो कुछ भी न था। वह युवती बहुत हैरान हुई। इतनी बहुमूल्य पेटी में भेजा था उसने उन हवाओं को, इतने प्रेम से। पत्र तो मिल गया, पेटी भी मिल गई, लेकिन हवाएं--हवाएं वहाँ नहीं थीं।

समुद्र की हवाओं को पेटियों में भरकर नहीं भेजा जा सकता। चांद की चांदनी को भी पेटियों में भरकर नहीं भेजा जा सकता। प्रेम को भी पेटियों में भरकर नहीं भेजा जा सकता। लेकिन परमात्मा को हम पेटियों में भरकर हजारों साल से एक-दूसरे को भेजते रहे हैं। पेटियां मिल जाती हैं--बडी खूबसूरत पेटियां हैं, साथ में लिखे पत्र भी मिल जाते हैं--गीता के, कुरान के, बाइबिल के लेकिन पेटी खोलने पर सत्य नहीं मिलता है। जो ताजी हवाएं उन लोगों ने जानी होंगी, जिन्होंने प्रेम में ये पत्र भेजे, वे हम तक नहीं पहुंच पाती हैं।

समुद्र की ताजी हवाओं को जानना हो तो समुद्र के किनारे ही जाना पडेगा, और कोई रास्ता नहीं है। कोई दूसरा उन हवाओं को आपके पास नहीं पहुँचा सकता है। आपको खुद ही समुद्र तक की यात्रा करनी होगी।

सत्य की ताजी हवाएं भी कोई नहीं पहुँचा सकता। सत्य तक भी हमें स्वयं ही यात्रा करनी होती है।

इस पहली बात को बहुत स्मरण-पूर्वक ध्यान में ले लेना जरूरी है। इस बात को ध्यान में लेते ही शास्त्र व्यर्थ हो जाएंगे। परंपराओं से भेजी गई खबरें हंसने की बातें हो जाएगी। और आपका चित्त नए होने के लिए तैयार हो सकेगा। आलस्य है, जो इस सत्य को नहीं देखने देता।

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