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असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

लेकिन बुद्ध के पिता की आंखें तो क्रोध से भरी थी। वे कहने लगे, मैं और तुझे नहीं जानूंगा, मैंने जिसने तुझे पैदा किया और जन्म दिया, मुझे तू शिक्षा देगा, मुझे तू समझाएगा बुद्ध ने कहा, परमात्मा करे किसी दिन आपके खयाल में आए कि जिसको आपने पैदा किया था, वह अब कहाँ है। मैं निवेदन करता हूँ, एक बार मुझे देखें, जो मैं हूँ।

पता नहीं बुद्ध के पिता देख पाए या नहीं। हम भी नहीं देख पाते हैं। हम भी पीछे-पीछे अटके रह जाते हैं। और जिंदगी रोज बदल जाती है। जिंदगी रोज बदल जाती है, प्रतिपल सब कुछ बदल जाता है, और हम पीछे ही उलझे रह जाते हैं। इसलिए जीवन से हमारा संस्पर्श नहीं हो पाता। और या फिर हम आगे के ऊहापोह में और कल्पना में खो जाते हैं।

मैंने सुना है एक आदमी एक ट्रेन में न्यूयार्क की तरफ सफर कर रहा था। एक बीच के स्टेशन पर एक युवक भी सवार हुआ। उस युवक के हाथ के बस्ते को देखकर लगता था वह किसी इश्योरेंस का एजेंट होगा। उस बूढ़े आदमी के पास वह बैठा। फिर थोड़ी देर बाद उसने पूछा कि क्या महाशय आप बता सकेंगे आपकी घड़ी में कितना बजा हुआ है, वह बूढा थोडी देर चुप रहा और उसने कहा क्षमा करें, मैं न बता सकूंगा। उस युवक ने कहा, क्या आपके पास घड़ी नहीं है। उस बूढ़े ने कहा, घड़ी तो जरूर है, लेकिन मैं थोड़ा आगे का भी विचार कर लेता हूँ, तभी कुछ करता हूँ। अभी तुम पूछोगे कितना बजा है और मैं घड़ी में देखकर बताऊंगा कितना बजा है। हम दोनों के बीच बातचीत शुरू हो जाएगी। फिर तुम पूछोगे, आप कहाँ जा रहे हैं। मैं कहूँगा, न्यूयार्क जा रहा हूँ। तुम कहोगे, मैं भी जा रहा हूँ। आप किस मोहल्ले में रहते हैं। तो मैं अपना मोहल्ला बताऊंगा। संकोचवश मुझे कहना पडेगा, अगर कभी वहाँ आए, तो मेरे घर भी आना। मेरी जवान लड़की है। तुम घर आओगे, निश्चित ही उसके प्रति आकर्षित हो जाओगे। तुम उससे कहोगे कि चित्र देखने चलती हो। वह जरूर राजी हो जाएगी। और यह मामला यहाँ तक बढ़ेगा कि एक दिन मुझे विचार करना पड़ेगा कि बीमा एजेंट से अपनी लडकी की शादी करनी है या नहीं करनी है। और मुझे बीमा एजेंट बिलकुल भी पसंद नहीं आते। इसलिए कृपा करो, मुझसे तुम घड़ी का समय मत पूछो।

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