उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
‘‘मैं इसको ठीक कर दूँगा। देखिये, मैंने जो कुछ वे चाहते हैं, सब प्रबन्ध कर रखा है। नगर के बढ़िया-से-बढ़िया पाँच बाजे बारात के आगे-पीछे चलेंगे। गैस के हंडों का इतना प्रबन्ध कर दिया है कि प्रकाश से नटवरलालजी चकाचौंध हो जाएँगे। मोटरों का प्रबन्ध भी हो चुका है। अपनेलिए, जिसमें मैं, आप और एक अन्य मित्र होंगे, ‘रोल्ज़ रायज’ एक लाख रुपये मूल्य की बम्बई से आ रही है। मेरे वे मित्र, जिनके साथ ‘ऐलिफेन्टा केब्ज’ पर पिकनिक के समय नोरा से भेंट हुई थी, उसी गाड़ी से आज शाम को आ रहे हैं। मैंने अपने लिए इतने बढ़िया कपड़े बनवाये हैं कि नोरा के पिता यह समझने लगेंगे कि साक्षात् भगवान ही उसकी लड़की को विवाहने आये हैं।’’
‘‘मैं हँस पड़ा। इस पर भी माणिकलाल कहता गया, ‘‘मुझको नोरा ने एक पत्र लिखा था कि उसके पिता शान-शौकत पसन्द करते हैं और मुझे इस विषय में उनको सन्तुष्ट कर देना चाहिए। अतः मैं यहाँ पाँच दिन पूर्व प्रबन्ध के लिए आ गया था। सब प्रबन्ध पूर्ण हो चुका है। देखिए, जब बारात लड़की वालों के घर पर पहुँचे और मेरे संरक्षक के रूप में लड़की के पिता से ‘मिलनी’ करें तो मुट्ठी भर-भर रुपयों की निछावर करियेगा।’’
मैं विस्मय कर रहा था कि माणिकलाल के पास यह सब-कुछ करने के लिए धन कहाँ से आ रहा है? कहीं यह तिब्बत से पारस पत्थर तो नहीं ले आया, जो अतुल धन का स्वामी बन, इस प्रकार बहा रहा है?
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